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________________ ( १२३ ) उपस्थित होती है, तब तक राष्ट्र तेज को हानि करती है, जिस देश में उसकी हत्या होती है उस देश में पुरूषार्थी वीर पुरुष उत्पन्न नहीं होता। इसका मारना क्रूरता का कार्य है इसका तृष्टमांस खाया जाता है और दूध पिया जाता है वह पितरों के लिए किल्बिष पाप जनक होता है। "एतद्वा उ स्वादियो यदधिगवं सू क्षीरं वा मांसं वा तदेव नाभीयात् ।" (नवम काण्ड, सूक्त ८ ऋचा) अर्थः-यह गौ के शरीर में रहने वाला मांस तथा दुग्ध अतिशय स्वाद होता है, इसलिए इन्हें नहीं खाना चाहिए । अथर्ववेद के उपर्युक्त उल्लेखों में मांस पकाना देश के लिए कितना हानिकारक और अपने पूर्व पुरुषों के लिए कितना पाप रूप है यह प्रथम उद्धरण में बताया गया है। द्वितीय उद्धरण में गाय का दूध तक पीना वर्जित किया है, तब मांस की अभक्ष्यता के लिए तो कहना ही क्या है ?.. यद्यपि वेद में प्रामशब्द कच्चे मांस के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, फिर भी प्राचार्य यास्क के “सिताम" शब्द की चर्चा में गालव के मत का-( "सितिमांसतो मेदस्त गोलवः" )
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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