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________________ ( ११४ ) भी कोई कोई रूििप्रय ब्राह्मण शास्त्र का नाम लेकर पशुबन्ध यज्ञ कर लेते थे, परन्तु उन यज्ञों की संख्या और स्वरूप अत्यल्प होने के कारण आस पास के लोगों को मांस मिलना तो दूर रहा उनकी खबर तक नहीं मिलती थी। जिनमें हजारों पशुओं का आमन्त्रित मेहमानों के खाने के लिए वध होता था, वे श्रश्वमेध राजसूय यज्ञ आदि महायज्ञ भूतकालीन इतिहास बन चुके थे, राजा युधिष्ठिर के बाद न ऐसे यज्ञ हुये और न हजारों पशुओं का बध ही हुआ । भगवान् महावीर के समय में कोई कोई ब्राह्मण व्यक्तिगत छोटे यज्ञ करवाते अवश्य थे, परन्तु उनमें पशुओं का स्थान ब्रीहि, यव और घृत ने लेलिया था । मधुपर्क तथा पितृकर्म में भी पिष्टपशु और घृत पशुओं से काम लिया जाने लगा था, मात्र दैवत कर्म में क्षत्रिय अथवा शूद्रादि निम्न जातियां पशुवध किया करते थे, परन्तु ये कार्य भी वैयक्तिक होने से कोई भी जाति इनमें उत्तरदायी नहीं थी। ईशा की षष्ठी शताब्दी में वैदिक धर्म के यज्ञादि नुष्ठानों का इतिहास ऊपर लिखे मुजब है । इस परिस्थिति में यह कथन कि ब्राह्मण हजारों पशु मारते और उनका मांस गांव में बांटते जिससे जैन श्रमणों को निर्मासमत्स्य आहार न मिलने से उन्हें भिक्षा में मांस मत्स्य लेना पड़ता था, कपोल कल्पना से अधिक महत्त्व नहीं रखता। जब यज्ञ में नियुक्त होने वाले ही नहीं थे और प्रोक्षित बलि मांस भी खाने वाले नहीं मिलते थे, तब हजारों पशुओं का मांस कौन खाता होगा ? इस बातका कौशाम्बीजी ने विचार किया होता तो वे ऐसी निराधार बात लिखने को कभी तैयार नहीं होते ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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