SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६५ ) देवराच सुतोत्पत्ति-मधुपर्के पशोधः । मांसदानं तथा श्राद्धे, वानप्रस्थाश्रमस्तथा ॥ अर्थः-देषर से पुत्र की उत्पत्ति, मधुपर्क में पशु का क्ध, श्राद्ध में पितरों को मांस-दान और वान प्रस्थाश्रम-निषेषण काल में मना है उत्क्रान्त मेध पशु पुरुष पशु से लेकर प्रत्येक मेध्य पशु किस प्रकार उत्क्रान्त मेध हुए इस विषय में ऐतरेय ब्राह्मण में नीचे लिखे अनुसार वर्णन मिलता है । "पुरुषं वै देवा पशुमालभन्त तस्मादालब्धान्मेध अक्राम, सोऽश्व प्राविशत, तस्मादश्वो मेभ्योऽभवत् , अथैन मुस्कान्त-मेधमत्यान्त,, ( स किं पुरुषोऽभवत् ) तेऽश्वमालभन्त, सोऽश्वादालमादुइक्रामत् , सगां प्राविशत् तस्माद् गोर्मेध्योऽभवत् , अथैनमुक्रान्त मेधमत्यार्जन्त (स गौर मेध्योऽभवत् ,) (अमेध्यो गौरभवत्) ते गामालभन्त, स गोरालब्धास्त्रामन् , सोऽषि प्राविशत् , तस्मादविर्मेभ्योऽभवत् ( अथैनमुत्क्रान्तं मेषमत्यार्जन्त) (स गवयोऽ. भवत् , ( तेऽविमालभन्त, सोऽबेरालब्धादुल्लामन् , सोऽ प्राविशत् , तस्मादजो मेध्योऽभवत् , ( अथैनमुत्क्रान्त मेधमत्यार्जन्त) (स उष्ट्रोऽभवत् ) ( सोऽजेऽजोक्त मामिवारभत ) ( तस्मादेष ऐतेषां पशूनां प्रयुक्ततमो यदजः ) तेऽजमालभन्त, सोलादालब्धाद्क्रामत् स इला प्राविशत् , तस्मादियं मेध्याभक्त , निमुः
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy