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________________ . ( 5 ) विभागों में विभक्त जानना चाहिए. और इसकी उपासना करनी चाहिए। वे चार विभाग ये हैं' स्वाध्याय,जप, कर्म,मानसिक । इनमें से परस्पर एक से दूसरा दशगुणी शक्तिवाला है, जैसे स्वाध्याय से जपयज्ञ दशगुणा, जप से कर्मयज्ञ दशगुणा और कर्मयज्ञ से मानसिक अप दशगुणा वीर्यवान् है । ये चारों प्रकार के यज्ञ ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी के लिए निर्विशेषतया उपासनीय हैं और क्रियात्मक रूप होने से गृहस्थ के लिए ये सर्व विहित हैं, क्रियाहीन ब्राह्मण नहीं, संस्कार-हीन द्विज नहीं,विद्वत्ता-हीन विप्र नहीं। इन सब गुणों से हीन श्रोत्रिय नहीं होता और अश्रोत्रिय को यज्ञ करने का अधिकार नहीं। शास्त्रकारों ने यज्ञ को गृहस्थों के लिए एक प्रकार का वृक्ष माना है । कहा है क्षमाऽहिंसादमःशाखा, सत्यं पुष्पफलोपमम् । ज्ञानोपभोग्यं बुद्धानां, गृहिणां यज्ञपादपं ॥ __ परिमा० प्र० प्र० अ०६ पृ० १३१ अर्थ-ज्ञमा, अहिंसा, इन्द्रिय-दमन, ये जिसकी शाखायें हैं सत्य जिसका पुष्प और फल है, ऐसा जो गृहस्थों का यज्ञरूप वृक्ष है, वह विद्वानों के ज्ञान द्वारा उपभोग्य चीज, है। . . पशुहिंसास्थानानि . कतिपय आधुनिक विद्वानों के कानानुसार सभीविका हिंसात्मक होते थे, परन्तु यह कथन यथार्थ नहीं हमने अमरीकन
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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