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________________ होता । पशुबन्ध द्वारा होने वाला सप्तम यज्ञ, और इसके आगे सभी यज्ञ राजा महाराजा द्वारा कराये जाते थे, जो कादाधिक थे, इन यज्ञों में हिंसा अवश्य होती थी, परन्तु उनमें के अधिकांश पशु उन बड़े बड़े यज्ञों में उपस्थित होने वाले आमन्त्रित मेहमानों के भोजनार्थ मारे जाते थे, क्योंकि क्षत्रिय जाति में मांस भक्षण और मदिरापान का रिवाज बहुत पुराने जमाने से चला आता था। __ अश्वमेधादि यज्ञ में घातित पशुओं की जो संख्या लिखी गई है, वह इन आमन्त्रित महमानों के भोजनार्थ ही समझना चाहिए। यह में जो पशु मारा जाता था वह यज्ञाधिकारियों में ही बांट दिया जाता था। यज्ञाधिकारी लोग उस उपहृत पशु को धन्य और स्वर्गीय विभूति मानकर अपने हिस्से को पवित्र पदार्थ के रूप में संचित रखते थे, न कि उनका भक्षण करते थे । भारतीय सभ्यता का खरा स्वरूप जाने बिना विदेशी वेदानुशीलक विद्वानों का यह कथन केवल हास्यास्पद है कि भारतीय आर्य देवता के तुष्टयर्थ घोड़े का बलिदान कर उसे पकाकर खाते थे। उनका यह कथन प्राचीन भारतीय आर्यों को तो लागू नहीं होता, क्योंकि उनके समय में पशुबलि प्रचलित नहीं थी। अश्वमेध आदि यज्ञों की सृष्टि ही ब्राह्मणकाल में हुई है, जो वैदिककाल से हजारों वर्ष पीछे का समय है । और अश्वमेदाधि में अश्व का जो वध होता था, वह खाने के लिए नहीं परन्तु उसको स्वर्ग प्रदान कराने की भावना से होता था, और उनके पवित्र अंगों को यज्ञाधिकारी इसलिये बांट लेते थे कि यह स्वर्गीय और धन्यपशु है। ..........
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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