SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणोनुं स्मरण करवा साथे प्रदक्षिणापूर्वक खमासण ॥ (३१) ॥ गुणो प्रत्येनुं बहुमान तेज गुणिनुं बहुमान होवाथी गुणोनुं स्मरण करवा साथे प्रदक्षिणापूर्वक समास मण (पंचांग प्रणिपात) देवां॥ श्री केवलज्ञान उत्पन्न थये श्री तीर्थकर प्रभुनी श्री तीर्थकर नामकर्म उदयथी प्रातिहार्य तथा अनेक अतिशयो गर्भित चार मूलातिशय स्वरूप अतिशयोथी थयेली विशिष्टता ध्यानमां लाववा माटेना बार गुणो अशोकाख्यं वृक्षं सुरविरचितं पुष्पनिकरं । ध्वनि दिव्यं श्रव्यं रुचिरचमरावासनवरम् ॥ वपुर्भासंभारं सुमधुरवं दुन्दुभिमथ । प्रभोः प्रेक्ष्यच्छत्रत्रयमधिमनः कस्य न मुदः॥१॥ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि-दिव्यध्वनिश्चामरमासनश्च। भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं सत्प्रातिहायाणि जिनेश्व राणाम् ॥२॥ १ प्रायः दरेक क्रियामां इरियावहिनी प्रधानता (प्रथम करवा पणुं) होवाथी कोइस्थळे खमासमण देतां पहेलां इरियाव ही करवानुं पण बतावे छे.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy