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________________ (३७६) नवपद विधि विगेरे संग्रह ।। सर होये तिहां कूपखनन घटे, नहिं तो होइ किलेश; तप उजमणुरे इणिपरे कीजीये. १५ सफल हुवो सवि नृप श्रीपालने, द्रव्य भाव जस शुद्ध, मत कोइ राचोरे काचो मत लेइ, साचो बिहुँनयबुद्ध. तप उजमणुंरे इणिपरे कीजीये. १६ चोथे खंडेरे दशमी ढाळ ए, पूरण हुश् सुप्रमाण, श्रीजिन विनय सुजस भगति करी, पग पग होय । कल्याण, तप. १७ ॥ कळश ॥ तपगच्छनंदन सुरतरु प्रगट्या, हीरविजय गुरुरायाजी। अकबरशाहे जस उपदेशे,पडह अमारि वजाया जी ॥ १ हेम सूरि जिनशासनमुद्राए, हेम समान कहाया जी ॥ जाचो हीरो जे प्रभु होता, शासन सोह चढाया जी ॥ २ ॥ तास पटे पूर्वाचल उदयो, दिनकर तुल्य प्रतापी जी ॥ गंगाजल निर्मल जस कीरति, सघले जगमांहि व्यापी जी ॥३॥ शाह सभा माहे वाद करीने, जिनमत थिरता थापी जी ॥ बहु आदर
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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