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________________ श्री सिद्धचक्राराधननो विधि ॥ (३६७) चार संवत्सरे, ए तप पूरण थाय रे ॥ चेतन० ॥२४॥ उजमणुं पण कीजीए, शक्ति तणे अनुसार रे ॥ इह भव परभव सुख घणां, पामीजे भवपार रे ॥ चेतन० ॥२५॥ आराधन फल एहनां, इह भवे आण अखंड रे ॥ रोग दोहग दुःख उपशमे, जिम घन पवन प्रचंड रे॥ चेतन० ॥ २६ ॥ नमणजले सिद्धचक्रने, कुष्ठ अढारे जाय रे ॥ वाय चोराशी उपशमे, रुझे गुंबड घाय रे ॥ चेतन० ॥ २७ ॥ भीम भगंदर भय टले, जाय जलोदर दूर रे ॥ व्याधि विविध विषवेदना, ज्वर थाये चकचूर रे ॥ चेतन० ॥ २८ ॥ खास खयन खस चकुना, रोग मिटे सन्निपात रे ॥ चोर चरड डर डाकिणी, कोइ न करे उपघात रे ॥ चेतन० ॥ २९ ॥ हीक हरस ने हेमकी, नारां ने नासूर रे ॥ पाठां पीडा पेटनी, टले दुःख दंतना सूररे । चेतन० ॥३०॥ निर्धनिया धन संपजे, अपुत्र पुत्रीया होय रे ॥ विण केवली सिद्धयंत्रना, गुण न शके कही कोयरे। चेतन०३१
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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