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________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww (३४४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ सूरी० ॥ नम०॥ ८॥ ज्ञानविमल गुण राजताजी। गाजे शासन मांहे, ते वांदि निर्मल करोजी ॥ बोधि बीज उच्छाह ॥ ९॥ न०॥ इति नवपद अधिकार तृतीय पद सझाय ॥ ॥ चतुर्थ पद सज्झाय ॥ ॥ पांडव पांचेवा ॥ चोथे पद उवझायर्नु, गुणवंतनुं धरो ध्यानरे, युवराजा समते कह्या, पद सूरिने समानरे ॥१ चो० ॥ जे सूरि समान व्याख्यान करे, पण न धरे अभिमान रे, वळी सूत्र अर्थनो पाठ दीये, भविजीवने सावधान रे॥ चो० ॥२॥ अंग इग्यार चउद पूर्व जे वळी भणे भणावे जेहरे ॥ गुण पचवीश अलंकर्या, दृष्टिवादे अर्थना गेह रे ॥ चो० ॥३॥ बहु नेहे अर्थ अन्यासे सदा, मन धरता धर्मध्यान रे ॥ करे गच्छ निश्चिंत प्रवर्तक, दिये स्थविरने बहु मान रे ॥ चो० ॥४॥ अथवा अंग इग्यार जे वळी, तेहना बार उपांग रे ॥ चरण करणनी सित्तरी, जे धारे आपणे
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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