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________________ ( ३३८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ साडाचार वर्षे होळी; नव करी तप उजवालेजी. मुनि भीमराज चकेसरी देवी; विमलेसर सुखकारोजी श्रीसंघ सहु दिनदिन अति दीपे; पामीजे भवपारोजी? ॥श्री सिद्धचक्र स्तुति (थोय)॥ १. त्रिगडे बेठा त्रिभुवननायक, वीर वदे एम वाणीजी, श्री श्रीपालतणी परे सेवो, सिद्धचक्र गुण खाणीजी ॥ अरिहंत आदि सिद्ध आचारज, उवज्झाय उलट आणीजी।साहदंसण नाण चारित्र तप, इति नव पद जाणीजेजी॥१॥आसो चैत्र शुदि सातमथी, नव आयंबिल पच्चरुखीजेजी। पडिक्कमणा दीय त्रिकाल पूजा, देववन्दन त्रण कीजेजी ॥ पद एकेकुं प्रतिदिन मन शुद्धे, तेर हजार गुणीजेजी, चोवीश जिननी सेका करीने, नरभव लाहो लीजेजी ॥ २॥ नव दिननी नव ओली करतां, आयंबिल एक्याशी थायजी, साढाच्यार वरसे उजमणुं करीने, तेहने सवी सुख दाइजी ॥ सिरि सिद्धचक्रना न्हवणजलथी, कुष्ठ अढार पलायजी, सकल
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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