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________________ (३१२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ वरष साडाचारनुं मान ॥ भवि० ॥५॥ पडिक्कमणां दोय टंकनां कीजे, पडिलेहण बे वार ॥ भवि०॥६॥ श्री अरिहंत पद स्तवन अरिहंत पद आराधीये, आणी उलट भाव, भविक जीव, अघहर मदमोचन धणी,ज्यों कंचन शुद्ध ताव । भविक जीव ॥ अरि० ॥१॥ त्रीजेरे भवे वर ध्यानथी, समकीत बीज अंकूररे, भविक जीव,अरिहंत पदशुद्ध अनुग्रहे, सबल करम चकचूररे॥ भविक जीव ॥अरि०॥२॥ अलख निरंजन आतमा,घटघट भाव प्रकाशरे,भविकजीव, भरमतिमिर घन संहरेज्यों रविकिरण उजासरे। भविक जीव ॥ अरि० ॥३॥ मोर पयोधर ऋतुसमे,हरखे चित्त उदाररे,भविक जीव। जिनवाणी हियडे धरी; उपजे अनुभव साररे, भविकजीव ॥ अरि०॥ ४॥ जलनिधि जल कोण भर शके, कोण तोले नगराजरे,भविक जीव । कहे जिनपद्म मुनीश्वर, त्रिभुवन जग शिरताजरे, भविक जीव ॥ अरि० ॥५॥ इति ॥ श्री सिद्धपद स्तवन भविजन वंदोजी,सिद्ध शुद्ध आतमारे आणी ममता अंग। सिद्ध समरंतारे सुगतिपणो वरेरे, लोहा पारससंग ॥ भवि०॥१॥ पंचदश भेदे सिद्धपणुं वरीरे,मेटी सकल
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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