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________________ www vvvvvvvvvvvvvvvv (३०४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ॥ अथ श्री सिझचक्रजी, स्तवन ॥ ॥ आठ लालनी देशी ॥ समरी शारदा माय, प्रणमी निज गुरु पाय ॥ आछे लाल ॥ सिद्धचक्र गुण गायशुं जी ॥ ए सिद्धचक्र आधार, भवि उतरे भवपार ॥ आ० ॥ ते भणी नवपद ध्यायशुं जी ॥१॥सिद्धचक्र गुणगह, जसगुण अनंत अछेह ॥ आ०॥ समया संकट उपशमे जी ॥ लहीए वंछित भोग, पामी सवि संजोग ॥ आ०॥सुर नर आवी बहु नमे जी॥२॥ कष्ट निवारे एह, रोग रहित करे देह ॥ आ०॥ मयणासुंदरी श्रीपालने जी।। ए सिद्धचक्र पसाय, आपदा दूरे जाय ॥ आ० ॥आपे मंगलमालने जी ॥ ३ ॥ए सम अवर न कोय, सेवे ते सुखीओ होय ॥ आ०॥ मन वचं काया वश करी जी ॥ नव आंबिल तप सार, पडिकमणुं दोय वार ॥ आ० देववंदन त्रण टंकनां जी ॥४॥ देव पूजो त्रण वार, गणणुं ते दोय हजार ॥ आ०॥ स्नान करी निर्मल जले.जी ॥ आराधेसिद्धचक्र, सानिध्य करे तेनी
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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