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________________ (२८४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ .. अगर ने अरगजा, तपदिन तां हो कीजे घृतदीप के. श्री सि० ॥३॥ आशो चैत्र शुक्ल पक्षे, नव दिवसे हो तप कीजे एह के; सहज सोभागी सुसंपदा, सोवनसम हो झबके तस देह के. श्री सि० ॥ ४॥ जावजीव शक्ते करो, जिम पामो हो नित्य नवला भोग के; चार वरस साडा तथा, जिनशासन हो ए मोटो योग के. श्री सि० ॥५॥ विमळदेव सांनिध्य करे, चक्रेश्वरी हो करे तास सहाय के श्री जिनशासन सोहीए, एह करतां हो अविचळ सुख थाय के. श्री सि०॥६॥ मंत्र तंत्र मणि औषधि, वश करवा हो शिवरमणी काज के त्रिभुवन तिलकसमोवडी, होय ते नर हो कहे नय कविराज के, श्री सि० ॥७॥ श्री नवपदनुं स्तवन. नरनारीरे भमतां भव भरदरीए, नवपदनुं ध्यान सदा धरीए, सुखकारीरे, तो शिवसुंदरी वरीए, नवपदनुं ध्यान सदा धरीए. ॥१॥ पहेले पद् श्री अरिहंत रे, करी अष्ट रिपुनो अंत रे, थया शिवरमणीना कंत रे, पद बीजे रे सिद्ध भजी दुःख हरीए रे; नवपदनुं ध्यान सदा धरीए; सुखकारी रे० ॥२॥ आचार्य नमुं पद बीजे रे; चोथे पद पाठक लीजे रे; प्रीतेथी पाय प्रणमीजे रे; पद पांचमे रे मुनि महाराज उच्चरीए रे, नव० ॥३॥ छठे पद दर्शन जाणुं रे, ज्ञान गुण मुख्य वखाणुं रे, आ जगमा जे खरं
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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