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________________ . (२८०) नवपद विधि विगेरे संग्रह । ।६। देववंदन त्रण टंकनां कीजे, देव पूजो त्रिकाळ.भवी० ॥७॥बार आठ छत्रीश पचवीशनो, सत्तावीश सडसठ सार, भवी० ॥ ८॥ एकावन सीत्तर पचासनो काउस्सग्ग करो सावधान. भवी० ॥९॥ एक एक पदनुं गुणगुं, गणीए दोय हजार, भवी० ॥ १०॥ एणे विधि जे ए तप आराधे, ते पामे भव पार, भवी० ॥ ११ ॥ कर जोडी सेवक गुण गावे, मोहन गुण मणिमाळ, भवी० ॥१२॥ तास शिष्य मुनि हेम कहे छे, जन्म मरण दुःख टाळ. भवी० ॥१३॥ सिद्धचक्रनुं स्तवन. सिद्धचक्रने भजीए रे, के भवियण भाव धरी, मद मानने तजीए रे, के कुमति दूर करी; पहेले पदे राजे रे, के अरिहंत श्वेततनु, बीजे पदे छाजे रे, के सिद्ध प्रगट भj. त्रीजे पदे पीळा रे, के आचार्य कहीए; चोथे पदे पाठक रे, के नील वर्ण लहीए. सिद्ध पांचमे पदे साधु रे, के तप संयम शूरा; श्याम वर्णे सोहे रे, के दशन गुण पूरा. सिद्ध० ३ दर्शनज्ञान चारित्र रे, के तप संयम शुद्ध वरो; भवियण चित्तआणी रे, के हृदयमांध्यान धरो. सिद्ध०४ सिद्धचक्रने ध्याने रे, के संकट वर्ण टळे; कहे गौतम वाणी रे, के अमृत पद पावे. सिद्ध०५
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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