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________________ अथ चत्यवंदनो॥ (२७३) प्रणमो बिहु करे जोडी । नमिए श्रीउवज्झायने, चोथे पद् मोडी ॥२॥ पंचम पद सर्व साधुन, नमतां न आणो लाज । ए परमेष्ठी पंचने, ध्याने अविचल राज ॥३॥दसण शंकादिक रहित, पद छठे धारो। सर्व नाण पद सातमे, क्षण एक न विसारो ॥ ४ ॥ चारित्र चोऱ्या चित्तथी, पद अष्टम जपिए । सकल भेद विच दानमूल, तप नवमे तापिए ॥५॥ ए सिद्धचक्र आराधतां, पूरे वांछित कोड, सुमतिविजय कविराजनो, 'राम' कहे करजोड॥६॥ सिद्ध भगवान, चैत्यवंदन. जगत भूषण विगत दूषण, प्रणव प्राणनिरूपकं ॥ ध्यान रूप अनुपमोपम, नमो सिद्ध निरंजनं ॥ १॥ गगन मंडल मुक्ति पद्मं, सर्व ऊर्ध्व निवासनं ॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे ॥ नमो० ॥२॥ अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह निरायुषं ॥ नामगोत्र निरंतराय, ॥ नमो० ॥३॥ विकट क्रोधा मान योधा, माया लोभविसर्जनं ॥राग द्वेष विमर्दित अंकुरे, ॥ नमो० ॥ ४ ॥ विमल केवल ज्ञान लोचन, ध्यान शुक्ल समीरितं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं ॥ नमो०॥ ॥५॥ योगमुद्रा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं, ॥ नमो० ॥६॥ जगत जनके दास दासी, तास आश निरासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं ॥ नमो० ॥ ॥७॥ समय समकित दृष्टिं जनकी, सोय योगी अयोगि
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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