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________________ (२६६) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ कुसुमेहिं अलंकियओ,सो सिद्धचक्क गुरुकप्पतरु अम्ह मनवंछिय फल दिओ॥१॥ ॥ पुनः नव पद चैत्यवंदन॥ श्रीअरिहंत उदार कांति, अतिसुन्दर रूप ॥ सेवो सिद्ध अनन्त शांत, आतमगुण भूप ॥१॥ आचारज उवझाय साधु, समतारस धाम ॥ जिनभाषितसिद्धांतशुद्ध, अनुभव अभिराम ॥ २ ॥ बोधिवाजगुणसंपदाए, नाणचरणतव शुद्ध ॥ ध्यावो परमानन्दपद्, ए नव पद अविरुद्ध ॥३॥ इह परभव आनन्दकंद, जग मांहि प्रसिद्धा ॥चिंतामाण सम जास जाग, बहुपुण्ये लद्धा ॥४॥ तिहुअणसार अपार एह, महिमा मन धारो ॥ परिहर परजंजालजाल, नित एह संभारो ॥५॥ सिद्धचक्रपद सेवतां, सहजानन्द स्वरूप ॥ अमृतमय कल्याणनिधि, प्रगटे चेतन भूप ॥६॥ इति श्रीसिद्धचक्रचैत्यवंदन संपूर्णम् ॥ ॥ चैत्यवंदनम् ॥ ॥ श्री सिरि सिद्धचक्क नवपय महल्ल पढमिल्ल पय मय जिणंद असुरिंदै चिय पयपंकय नाह तुझ नमो ॥१॥ सिरि रिसहेसर सासिय फल दाण कप्पतरु कप्प कंदप्पगं
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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