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________________ नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ अमृतक्रिया तिम लहि एकवार, बीजारे साधन विण शिव नवी अडेजी ॥१॥" काणमां सारी रीते शास्त्रार्थं चिन्तवन, क्रियाने विषे मननी एकाग्रता, तथा कालादि साधनोमां अविपरीतपणं ते अमृतानुष्ठाननुं लक्षण छे. अमृतानुष्ठानो आनन्द भव्यजीवनना हृदयमां समातो नथी. (१०) क्रियानो अंगीकार, क्रिया करवामां प्रीति, धर्मने विषे व्याघाताभाव, ज्ञानादि संपत्तिनी प्राप्ति, वास्तविक स्वरूपनी जिज्ञासा, वस्तु धर्मना जाणकार गीतार्थोनी उपासना, ए सदनुष्ठानना लक्षणो छे. आ पांचे अनुष्ठानोमां प्रथमना त्रण अनुष्ठानो त्याज्य छे कारण तेमां क्रिया दूषित थाय छे, अने छेवटना बे अनुष्ठानो आदरणीय छे. वळी क्रियाना दग्ध १ शून्य २ अविधि ३ अतिप्रवृत्ति ४ दोषो पण वर्जवा. क्रिया साथे भावनी खास प्रधानता राखवी, कारण एकली क्रियाथी थएल कर्मक्षय देडकाना चूर्ण तुल्य को छे, अने भावपूर्वक क्रियाथी थएल कर्म
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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