SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नवपदीनी पूजा ॥ (२२७) ॥ अथ तृतीय श्री आचार्यपदपूजा प्रारंभ ॥ ॥ काव्यं ॥ ॥ सूरीण दुरीकयकुग्गहाणं॥ नमो नमो सूरसमप्पहाणं ॥२॥ नमुं सूरिराजा सदा तत्त्वताजा, जिनेंद्रागमे प्रौढसाम्राज्यभाजा ॥ षट्वर्ग वर्गित गुणे शोभमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना ॥ ८॥ भविप्राणीने देशना देश काळे, सदा अप्रमत्ता यथा सूत्र आले ॥ जिके शासनाधार दिग्दंति कल्पा, जगे ते चिरं जीवजो शुद्ध जल्पा ॥९॥ २ बीजी प्रतनो वधारो. १ सूरी० सद्देसणादिसुसमायराणं, अखंडछत्तीसगुणायराणं १ २ हवे आचारजपद तणी, पूजा करो सविशेष । मोह तिमिर दूरे हरे, सूझे भाव अशेष ॥२॥ (बाकी सरखं) निरवद्य विद्याए पवित्र, मंत्र सिद्धनो बीज । गुरुनी भक्ति विवेकीये, करवी नति एहीज ॥१॥ जिनवरनी भक्ते करी, पूर्व खपावे कर्म । नमस्करे आचार्यजी, सिद्ध मंत्रादिक धर्म ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy