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________________ ( २२० ) नवपद विधि विगेर संग्रह ॥ चकचूर जेणे, भला भव्य नवपद ध्यानेन तेणे ॥ करी पूजना भव्य भावे त्रिकाळे, सदा वासियो आतमा तेणे काळे ॥ ३ ॥ जिके तीर्थकर कर्म उदये करीने, दिये देशना भव्यने हित धरीने ॥ सदा आठ महापाडिहारे समेता, सुरेशे नरेशे स्तव्या ब्रह्मपुत्ता ॥ ४॥ कर्यां घातियां कर्म चारे अलग्गां भवोपग्रही चार जे छे विलग्गा ॥ जगत् पंच कल्याणके सौख्य पामे, नमो तेह तीर्थकरा मोक्षकामे ॥५॥ श्रीदेवचन्द्रजीकृत स्तवना ॥ || ढाळ || उलालानी देशी ॥ तीर्थपति अरिहा नमुं, धर्म धुरंधर धीरोजी ॥ देशना अमृत वरसता, निजवीरज वडवीरोजी ॥ १ ॥ (उलालो) वर अखय, निर्मल ज्ञानभासन, सर्वभाव प्रकाशता || निज शुद्ध श्रद्धा आत्मभावे, चरणथिरता वासता ॥ जिन नामकर्म प्रभाव अतिशय प्रातिहारज शोभता ॥ जगजंतु करुणावंत भगवंत, भविकजनने क्षोभता ॥ २ ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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