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________________ नवपद विधि विगेरे संग्रह। ५श्री वीतरागदेव जिनेश्वर भमर्वते बत्तविल मार्ग प्रत्ये उल्लास पामती तीप्रश्रकाथी असंख्य प्रदेश वीर्य स्फूर्ति साथे उछळता आनन्दथी शुद्धविधि साचववाथी अमृतानुष्ठान थाय छे. __ अमृतानुष्ठान अमृतक्रिया] ना लक्षणो-जे क्रिया करता होय तेमांज शुद्ध एकाग्र उपयोग होय, आडी अवळी दृष्टि न होय, तथा मननी व्यग्रतारूप क्षेप दोष न होय ते 'तद्गतचित्त'. १.जे क्रियानो शास्त्रमा जे काल कह्यो होय ते समयेज करवा योग्य शुभ क्रिया करता होय ते 'समयविधान'२.चित्तनो उल्लास अने परिणामधारानी पुष्टि होय ते 'भाववृद्धि ' ३. जेम नारकी जीव नरकथी त्रास पामतो होय, केदी केदथी भयवाळो होय छे तेम संसारनुं जन्म-जरामरणादि दुःख स्वरूप जाणी संसारथी भयवाळो होय ते 'भवभय' ४. जे क्रिया करतो होय ते क्रिया मुक्तिनुं परम साधन छे पूर्वे कोई वखत मळेली नथी तेम विचारतो आश्चर्यवन्त थोय ते "विस्मय'
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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