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________________ पच्चक्खाण...: (१९९) गारेणं पाणस्सलेवेण वा अलेवेण वा अच्छेण वा बहुलेवेण वा ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसिरइ ॥ आयंबिल करी मुखशुद्धि कर्या पछी उठता तिविहारनु पञ्चक्खाण. दिवसचरिमं पच्चवखाइ तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ मुट्ठिसहियंनु पच्चक्खाण. मुट्ठिसहियं पच्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरश् ॥ १ साथे देसावगासिय पच्चक्खाण लेवू होय तो “ देसावगासियं उवभोगपरिभोगं पञ्चक्खाइ, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ " ए पच्चख्खाण पण साथे बोलवू. __ २ गंठसी, वेढसी आदि पच्चख्खाण करवू होय तो ते पाठ बोलवो.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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