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________________ तपपदना पचास भेदोना नमस्कार पदोना अर्थ ॥ (१५१) मुक्तिना साधनध्यानमा प्रवृत्ति राखवा स्व०अभ्य न्तर तप, ४९ बाह्य उत्सर्ग (द्रव्य शरीर वस्त्रादिना त्याग) __ स्वरूप अभ्यन्तर तप. ५० अम्यन्तर उत्सर्ग (मिथ्यात्व, कषाय,विगेरे कर्मबन्ध हेतुओना त्याग ) स्वरूप अभ्यन्तर तप. आ प्रमाणे बाह्य तपना बार, तथा अभ्यन्तर तपना अडत्रीश कुल पचास भेदथी विभूषित तपपदने म्हारो नमस्कार थाओ. श्री तपः पदाराधननो काउस्सग्ग पूर्वनी माफक जाणवो, मात्र पचासगुणविभूसियसिरितवपया. राहणत्थं काउस्सग्गं करेमि [पञ्चाशद्गुणविभूषितश्रीतपःपदाराधनाथ ] आ प्रमाणे बोलवू, पचास लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, जापपद “ओ ही नमो तवस्स जपवु” आ दिवसे श्री तपपदमा जेम विशेष लीनता थाय तेम तपपदना गुणोनुं ध्यान स्मरण विशेष करवू. शेष तमाम विधि पूर्वमाफक जाणवी, मात्र
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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