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________________ चारित्रपदनी भावना माटे नमस्कार पदोना अर्थ ॥ ( १३३ ) थी शुद्धब्रह्मचर्यनी गुप्तिस्वरूप चारित्र भीतने आंतरे रहेला स्त्री पुरूषोनी क्रीडाना शब्द सांभळवा विगेरे त्याग करवाथी शुद्ध ब्रह्मचर्यनी गुप्ति स्व० चारित्र. पूर्वे भोगवेला स्त्रीसंबंध क्रीडा विगेरे नहि संभारवाथी शुद्ध ब्रह्मचर्यनी गुप्ति स्व० चारित्र ४९ सम्यकप्रकारे सरस मिष्टान्न आहारनो त्याग करवाथी शुद्ध ब्रह्मचर्यनी गुप्ति स्वरूप चारित्र, ५० सम्यकप्रकारे कंठपूर घणा प्रमाणथी आहारादि नहि खावाथी शुद्ध ब्रह्मचर्यनी गुप्ति स्व० चारित्र, ५९ सम्यकप्रकारे शणगार सजवो विगेरे शरीर शोजा त्याग करवाथी शुद्ध ब्रह्मचर्यनी गुप्तिस्व० चारित्र. ५२ सम्यकप्रकारे सम्यग् ज्ञानपरिणति स्व० चारित्र. ५३ सम्यकप्रकारे सम्यग्दर्शनपरिणति स्व० चारित्र. ५४ सम्यकप्रकारे सम्यक् चारित्र परिणति स्व० चारित्र ५५ सम्यकप्रकारे अनशन (चारे आहारना त्याग रूप) बाह्यतप स्व० चारित्र, ४७ ૪૮ "" ""
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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