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________________ श्री ज्ञानपदनी भावना माटे नमस्कार पदोना अर्थ ॥ (११९) २ विशेषे करी स्वच्छ अने विस्तीण पर्यायो जणावनार ने 'विपुलमति मनःपर्यव' १ केवलज्ञान १ लोकालोकना त्रिकालवर्ति रूपि अरूपि आदि समगद्रव्य,क्षेत्र,काल,भावने प्रकाश करनार 'केवलज्ञान.' ५१ भेदोए विभूषित श्री ज्ञानपदने म्हारो नमस्कार थाओ, श्री ज्ञानपदाराधननो काउसग्ग पूर्वनी माफक जाणवो, मात्र एगावन्नभेयविभूसियसिरिनाणपयाराहणत्थं काउसग्गं करोमि (एकपञ्चाशद्भेदविभूषितश्रीज्ञानपदाराधनार्थ) आ प्रमाणे ५१ लोगस्सनो काउसग्ग करवो, जापपद औ ह्री “नमो नाणस्स” जप, आ दिवसे ज्ञानस्वरूपमा जेम विशेष लीनता थाय तेम ज्ञान स्वरूपनुं ध्यानस्मरण विशेष करवू शेष तमाम विधि पूर्वनी माफक, मात्र ज्ञानपदनुं ध्यान शुक्लवणे करवानु होवाथी चोखाना द्रव्यनुं आंबिल करवं.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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