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________________ 308 श्री नवकार समो जगि, मंत्र न यंत्र न अन्य । विद्या नहि औषध नहि, एह जपे ते धन्य । कष्ट टल्यां बहु एहने, जापे तूरत किध्ध । एहना बीजनी विद्या, नमि विनमिने सिद्ध ॥ २४ ॥ रतन तणी जेम पेटी, भार अल्प बहु मूल्य । चौद पूरवनुं सार छे, मंत्र ए तेहने तूल्य ।। सकल समय अभ्यंतर, ए पद पंच प्रमाण । महसुअ-खंध ते जाणो, चूला सहित सुजाण ॥ २५ ॥ नमस्कार अरिहंतने, वासित जेनुं चित्त । धन्य तेह कृतपुण्य ते, जीवित तास पवित्त ॥ आतध्यान तस नवि हुए, नवि हुए दुरगतिवास । भवक्षय करतां रे समरतां, लहीए सुकृत उल्लास ॥२६॥ से प्रभारी “ नमः४२ ते सिद्धन" विगेरे पही જોડીને આ ૨૬મું કાવ્ય પાંચે પરમેષ્ઠિઓ માટે પણ मोदी शाय छ ] पंच नमस्कार ए सुप्रकाश । एहथी होये सवि पाप नाश ॥ सर्व मंगल तणुं एह मूल । सुजश विद्या विवेकानुकूल ॥ २७ ॥ अरिहंतादि सुनवह पद, निज मन धरे जो कोइ । निश्चय तसु नरसेहरह, मनवांछित फल होइ ।। २८ ॥
SR No.022930
Book TitleDharm Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundvijay
PublisherUnknown
Publication Year1965
Total Pages656
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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