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________________ १२० २२-५. श्री सुशासभा२७ महारा०४ हमारे इस विश्व को भय से विमुक्त करने के लिए जितना साहसिक एवं उन्मुक्त चिन्तन भगवान महावीर ने दिया है, उतना अन्यत्र मिलना दुर्लभ है । उद्वेगों से पराजित मानव जाति को, प्रतिष्ठा एवं लालसा से प्रेरित बुद्धि के गलत नेतृत्व को, बाह्य आसक्ति एवं अन्य प्राणियों को हानि पहुंचाने की दुर्भावना को, जिस आत्म-विश्वास के सहारे श्रद्धेय महावीर ने हमें उद्बोधन दिया है, वह युग युग तक हमारे इस जगत के लिए सुख-समृद्धि का प्रशस्ततम मार्ग है । हम इसका मूल्यांकन कर सकें या नहीं, यह एक अलग बात है, किन्तु यह निश्चित है कि राम की कर्तव्यभावना, कृष्ण की लोकनीति और बुद्ध की करुणा में भगवान महावीर के त्याग को जबतक प्रतिष्ठित नहीं कर दिया जाएगा तब तक आर्यसंस्कृति प्रतिष्ठित न हो सकेगी और न ही विश्वसंस्कृति प्राणवान बन सकेगी । ૩–ભારતવર્ષના અગ્રગણ્ય પુરૂ તરફથી २३-श्री २वीन्द्रनाथ ॥१२: શ્રી મહાવીરે ડીંડીમનાદથી એક્ષને એવો સંદેશે હિંદમાં વિસ્તાર્યો કે ધર્મ એ માત્ર સામાજિક રૂચી નહિ, પણ વાસ્તવિક સત્ય છે. મોક્ષ એ સાંપ્રદાયિક ક્રિયાકાંડ પાળવાથી મળતું નથી, પણ સત્ય ધર્મના સ્વરૂપને આશ્રય લેવાથી પ્રાપ્ત થાય છે અને ધર્મમાં મનુષ્ય-મનુષ્ય વચ્ચેનો ભેદ સ્થાયી રહી શકતા નથી.
SR No.022916
Book TitleVeer Vachanamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages550
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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