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________________ [७] है अनन्त धर्मात्मक सच्चा, वस्तु मात्र का शुद्ध स्वरूप । अनेकान्त से उसको देखो, तब निश्चय होगा अनुरूप । यह सिद्धान्त उदार वीर का, स्याद्वाद कहलाता है । सर्व दर्शनों में सर्वोपरि, विजय परम पद पाता है । [८] मानवजीवन ही जिनका है, उपकारी उपदेश विशेष । स्मरण स्तव सुखदायक जिनका, हैया से में करुं हमेश । अगर पूर्ण विकसित सद्गुण-पुष्पों की विशद विजय वरमाल । वीर प्रभु को सादर सविनय, करूं समर्पण मैं समकाल । [२] રચયિતા: આશુકવિ મુનિશ્રી નથમલજી महावीर के प्रति [१] ज्योतिपुञ्ज ! तुम अमल चक्षु हो चकाचौंध में अन्धकार में स्वयं रम्य हो तन्मयता से चिन्मयता से तुम अदम्य हो श्रद्धामय ज्योतिःकिरणों से स्वयं गम्य हो सहज नम्य हो
SR No.022916
Book TitleVeer Vachanamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages550
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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