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________________ 147973 RAI बस इस सुंदर सम्वाद ने इस गुरुशिष्य के अलौकिक प्रेम ने, इस हृदयस्पर्शी विनीत और वात्सल्यपूर्ण भावना ने मुझे मेरे उपकारी गुरुदेव के जीवनचरित्र के लिखने में प्रेरणा पैदा की। वहां बैठे बैठे ही मैंने मेरी बाल्यावस्था में जिन २ घटनाओं का अनुभव किया हुआ था उनको लिख लिया और चौमासा पूरा होते ही श्री महावीर जैन विद्यालय के नये मकान के बनवाने के लिए गुरु महाराज की प्रेरणा से मगसर कृष्णा द्वितीया के रोज सहाय के तौर पर द्वितीय साधु मुनि प्रभाविजयजी को साथ लिए मुंबई की तरफ प्रस्थित हुआ । मुंबई पहुंच कर अपने हितचिंतक विश्वस्थ सज्जनों की अनुमति से प्रेरित होकर हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक बाबु कृष्णलालजी वर्मा से जीवन चरित्र का प्रथम भाग लिखवा कर प्रगट किया । उसकी नकलें भक्तजनों के दृष्टिगोचर होते ही लोगों ने उपरा उपरी खरीदना शुरू किया । निदान थोडे ही दिनों में वे मुद्रित कॉपीया खप गई और भक्त जनों की मांग उपरा उपरी आने लगी । अब दो सवाल दृष्टिके सामने खड़े हुए कि श्री गुरूदेव का जीवनचरित्र अब किससे लिखवाना । कौन ऐसा प्रखर लेखक हैं जिसकी लेखनी पर वाचकवृंद मुग्ध हो । दूसरा प्रश्न यह कि किस भाषा NAAA
SR No.022910
Book TitleYugveer Acharya Vijayvallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Harichand Doshi
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1943
Total Pages570
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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