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________________ GAGGAGGAGGAGGAGGCKGRGGCCcxcx बोलने का खुराक मिल सके। जो लेखन गुजरातीमें छपा हो वो हिन्दीमें भी छपाये तो वक्ताओंको कभी है निराशा न होने पाये। इसलिए तैयार सामग्रीको व्यवस्थित करके छपानेका निर्णय हुआ। प्रथम वर्तमानपत्रोंमें जो घटना और प्रसंग पालीताणामें हुए वे छपानेका कार्य शुरु किया। उनका ही प्रथम, भाग गुजरातीमें प्रकाशित हो गया है। अच्छे लेखक के अभावमें यह सब सामग्री या संकलन सुव्यवस्थित और आकर्षित न हो सका फिर भी पाठकों तथा वक्ताओंकी जरुरियातों को अच्छी तरह संतोष दे सकेंगे ऐसी श्रद्धा है। हिन्दीभाषी प्रजाके लिए भी जीवन कवनकी सामग्री हिन्दी भाषामें प्रगट होती है। प्रसंगों--घटनाएँ है इतना ज्यादा है कि यह किताव जैसे ही दो कितावें प्रकट करनी पडे लेकिन अभी तो प्रथम भाग ही प्रसिद्ध हुआ है। यह पुस्तिका दो वर्ष पहले छपवाना जरूरी था लेकिन यकायक मेरी भयंकर विमारीके कारण यह कार्य स्थगित हो गया था लेकिन अब वे आज प्रकट हो रहा है। प्रस्तुत जीवनदर्शनके प्रथम भागमें जन्मस्थान, जन्मदाता कौन ? दीक्षा-संयमका स्वीकार कब किया ? शास्त्राभ्यास कैसी तरह किया? फिर वादमें कैसे कैसे ग्रंथोंका सर्जन शुरु किया? शिल्प स्थापत्यके क्षेत्रमें, चित्रकला के क्षेत्रमें छोटी उम्रमें कैसा सर्जन किया ? धर्मवोध ग्रंथश्रेणि प्रकाशनके द्वारा जैन प्रजाके उत्थानके लिए कैसा प्रयास किया ? “विश्वशांति आराधना सत्र" मुंबईमें मनाया उस प्रसंगका विशिष्ट साहित्यकलाका प्रदर्शन मनाया गया था। वे प्रसंग पूज्य गुरुदेवोंके साथ मुंबई पायधुनीमें गोडीजी उपाश्रयमें विराजमान थे तब मुम्वादेवीके चौगानमें यह प्रसंग मनाया गया था। फिर भारत-पाकिस्तान की लडाई है के समय देशको सुवर्णकी जरूरियात हुइ उस वक्त देशके वडाप्रधान श्री लालबहादुरशास्त्रीकी विनंती होते ? १ १७ लाख का सोना तीन दिनमें जैन समाज की पाससे इकट्ठा करा दिया और गोडीजीके उपाश्रयमें ६ गृहप्रधान श्री गुलझारीलाल नंदाने विशाल जनताकी उपस्थिति के बीच अर्पण किया गया था। यह एक ऐतिहासिक और सुवर्णाक्षरोंमें नोंधनीय घटना थी। पालीताणा जनसाहित्यमंदिरमें भारतके वडाप्रधान श्री वी० पी० सिंघका आगमन हुआ उनका प्रेरक प्रसंग, २३ सालकी छोटी उम्रमें तैयार किया “उणादि प्रयोगयशस्विनी मंजूषा" नामके संस्कृत पुस्तक ? के विमोचनका प्रसंग तथा यही पुस्तक का उज्जैन युनिवर्सिटीमें देश-परदेशके २००से ज्यादा अग्रगण्य । विद्वानोंके बीच मनाये लोकार्पण समारोह। यह संस्कृत पुस्तक जो भारतभरमें संस्कृत भाषा के क्षेत्रमें | पहलीवार तैयार हुआ उसकी घटना। बादमें साहित्यके क्षेत्रमें किये कार्योंकी विस्तृत नोंध । गुरु-शिष्यके वीच हुए पत्र व्यवहारका जो पुस्तक प्रगट हुआ उसमें प्रोफेसर श्रीमान् रमणलाल शाहने हैं जो निवेदन लिखा वे भी यहाँ छपा है। अटारह सालकी छोटी उम्रमें जैनधर्मकी महान् कृति “संग्रहणी रत्नम्" अपरनाम “बृहत् संग्रहणी' 8 के ६००-७०० पृष्ट का विस्तृत अनुवाद किया था। जिसमें इतिहासमें कभी किसीने किया न हो ऐसे अभूतपूर्व और बेजोड भूगोल-खगोलके विषयमें विविधरंगी विविध चित्र तथा कोष्टक भी थे। जैनसमाज ? के इतिहासमें ऐसी सचित्र कृति पहलीबार प्रकट हुई उनकी विगत दी है। ऐसी छोटी-बडी रसप्रद विगतोंका संग्रह यह पुस्तिकामें पढनेको मिलेंगे। यह पहले भागमें बहुत taramananesamex [७५८ ] Groceramanand
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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