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________________ चित्रों के सम्बन्ध में किञ्चित् लोग सूत्र सीख लेते हैं, किन्तु सूत्रों के बोलने के समय उनके साथ की जाने वाली शरीर सम्बन्धी मुद्राएँ ( अंगोपांग की रचनाएँ) और आसन ( कैसे खड़े रहना, कैसे बैटना) उसकी समझ न होने से कुछ करते ही नहीं । कुष्ट समझदार लोग मुद्रासनादि करते है किन्तु पूरी जानकारी के अभाव में अशुद्ध और अपूर्ण मुद्राएँ- आसनादि करते हैं। यदि उनके चित्र हों तो उनको देखकर मुद्रासनों का ज्ञान प्राप्त करके ये अच्छी तरह कर सके इसलिये मन्दिर और उपाश्रय में होने वाली नित्य क्रियाओं से सम्बन्धित मुद्रा और आसनों के चित्र व्यवस्थित रूप से तैयार करके इसमें मुद्रित किये हैं। मुहपत्ती का सम्पूर्ण पडिलेहण ६५ प्रतिशत लोगों को नहीं आता होगा। इस विधि को वे सीख सकें इसलिये मुहपत्ती के चित्रों को प्रथम बार ही प्रकाशित किया है। इस प्रकार कुल ४० चित्रो का इसमें समावेश किया है । एक बात सबके अनुभव की है कि शब्दों के द्वारा जो बात नहीं समझाई जा सकतीचार पृष्ठ पढने पर भी जो बात स्पष्ट समझ में नहीं आती, उस बात का यदि एक ही चित्र हो तो वह बात शीघ्र सरलता से समझ में आ जाती है। पाठकगण ! चित्रों को रसपूपर्वक देखें, उत्साहपूर्वक विन ऊबे उसका ज्ञान प्राप्त करेंगे तो चित्र अच्छी तरह, सुगमता से, सही रूप से, तीव्रता से अपनी बात समझा देगें । चित्र प्रदर्शन की दूसरी खूबी यह है कि शब्दों का श्रवण या वांचन स्मरण पर टिका रहे या न रहे पूरा टिके या न टिके, परन्तु चित्र तो अपनी छाप हृदय पट पर चिरकाल तक छोड़ जाते हैं और बहुत बार तो वह छाप अमिट रूप से अंकित हो जाती है । आज तो एक बात विश्वप्रसिद्ध, अनुभव सिद्ध वन चुकी है कि इस युग में प्रजा को शक्य हो वहाँ तक चित्र और आकृतियों द्वारा ज्ञान देना विशेष उपयुक्त होता है । चित्र द्वारा प्राप्त होने वाले ज्ञान में सिर और दिमाग को ज्यादा कसरत नहीं करनी पड़ती, इसलिये सभी कक्षा के लोग उस ज्ञान को खुशी-खुशी रसपूर्वक लेते हैं। फिर सचित्र ज्ञान अल्प समय में प्राप्त होता है फिर भी वह दीर्घजीवी वन जाता है। ये चित्र प्रथम जीवंत व्यक्ति के स्केच का अंकन कर वाद में तैयार किये हैं । इन चित्रों में खमासमण के चित्र के सम्बन्ध में किंचित् मतभेद हैं किन्तु हमने यहाँ प्रचलित सुप्रसिद्ध प्रकार का चित्र दिया है। अन्य चित्र विशेष रूप से अच्छे बने, ऐसा प्रयत्न किया है। फिर भी कोई सुधार की आवश्यकता हो तो बताने की पाठकों को नम्र विनती है । - मुनि यशोविजय [ ४३२ ] ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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