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________________ 388888883333333838889393388888888888888888888883839333333333333393 888888888888888888888888888888888888888888 १६६६ मां राजनगरमां अवधान-धारणाशक्तिना प्रयोगो कर्या पछी ज काशी गयानी वात सुजसवेलीकार करे छे, पण तेथी ते तुरत ज गया छे के वे--चार वरसो बाद ? ते सूचवता नथी। आना अचूक निर्णय माटे अन्य साधनो गवेषवां जोईए. कालधर्मनी तिथि कई ? उपाध्यायजीनुं आयुष्य अने स्वर्गगमननी संवत अंगे विद्वानोमां पचासेक वरसथी मतभेद चाले छ। एमां कालधर्मनी साल तरीके मोटो भाग १७४५नो उल्लेख करतो आव्यो छे, ज्यारे वस्तुस्थिति तेथी जुदी छ। छतां आम केम चाल्युं हशे ? एना कारणमा प्रधान कारण तो पादुकानो शिलालेख ज लागे छ। एना उपर “१७४५ नी साल अने मागसर सुदि ११" लख्युं छे। प्रथम जेणे अचोकसाईथी लखाण वांच्यु हशे तेणेज प्रस्तुत साल-तिथिने कालधर्मनी साल-तिथि जाहेर करी दीधी हशे! अने पछी तो लीटे लीटे सहु उल्लेख करता गया हशे! परिणामे आपणां भीतिया पंचांगोमां पण आ खोटी तिथिनो उल्लेख थई रह्यो छे। परंतु ते साल नथी तो जन्मनी के नथी स्वर्गगमननी! माटे चाली आवती आ भूलने सत्वर सुधारी लेवी जोईए। प्रस्तुत १७४५ नो उल्लेख ते तो अमदावादनी पादुकानी प्रतिष्ठानो छ। आथी एक वात निःशंकपणे निश्चित थई जाय छे के तेओ १७४५ ना मागशर सुदि ११ पहेलां स्वर्गवासी थया हता। पण ते क्यारे? ते निर्णय करवानो रहे छ । सुजसवेलीकारे गाएला "सत्तरत्रयालिं चोमासु रह्या, पाठक नगर डभोई रे; तिहां सुरपदवी अणुसरी, अणसणिकरि पातिक धोई रे." आ पद्य उपाध्यायजी डभोईमा चोमासु रह्याचं स्पष्ट जणावे छे। पण स्वर्गगमन चातुर्मासमां थयु के ते पछी थयुं ? ते विषे ते संपूर्ण मौन छ। जो के आ कृतिनी सालोए भारे शंका उभी करी छे, तेथी तेने केटलुं वजन आप, ते मुंजवणनो विषय छ; एटले ए वातने बाजू पर मूकीए, पण उपाध्यायजीए ज सुरतना चातुर्मासमां वे गुजराती पद्यकृतिओ बनावी छे; ए कृतिमा रचनानी साल जे जणावी छे, तेनु अन्तिम पद्य आ प्रमाणे छे सुरति चोमासु रही रे, वाचक जस करि जोडी, वइ० युग-युग-मुनि-विधु वत्सरइ रे, दियो मंगल कोडी. [प्रतिक० हेतुगर्भ स०] 89393333333333333333843333834333388888888393333333333333333333333333333039338 युग-युग-मुनि-विधु वत्सरइ रे, श्रीजसविजय उवज्झाय, टोड० सुरत चोमासु रही रे, कीधो ए सुपसाय टो०॥६॥ [अगियार अंग स०] 88888888888888888888 [१६८ ]888888888888888
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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