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________________ 388888888888888888888888888888888888888888 विषाद छे। छतांय अन्तःसामग्रीनुं जीवंत चैतन्य मारा विषादनी विस्मृति करावे छ। . स्मृतिग्रन्थमां शुं छे ? 83333883883333333338888888888888888888888888888888888883833 ____ आ स्मृतिग्रन्थने बे विभागमां वहेंची नांखवामां आव्यो छे, पहेला विभागने ‘महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी जीवन-कवनदर्शन' नाम आप्यु छ। आ विभागे ३२॥ फोर्म एटले २६० पृष्ठो रोक्यां छे। वीजा विभागने ‘अन्यविषयक निबन्धो' ए नामथी रजू को छ। आ विभाग, लगभग १० फोर्म एटले ७५ पृष्ठमां समाप्त थाय छे, त्यार पछी वकील श्रीयुत् नागकुमार ना० मकाती तथा श्रीयुत जसुभाई जैनना संपादन नीचे पू० उ० श्री यशोविजयगुरुमंदिर-प्रतिष्ठा अने श्रीमद् यशोविजयसारस्वत सत्रनो सुविस्तृत हेवाल, तार-टपालना संदेशाओ तथा सत्र अंगे विद्वान मित्र डो. श्रीयुत भोगीलाल सांडेसरा तथा वकील श्रीयुत नागकुमार मकातीए आलेखेलां संस्मरणो वगेरे, अने अन्तमा उपाध्यायजी भगवानना ग्रन्थोनी वधु शुद्ध अने विशिष्ट ग्रन्थयादी* ___आपी छ। आ रीते आखा ग्रन्थनी पृष्ठ संख्या ४६० थई छ। आ अंकमां साध्वीजी महाराज तथा श्राविकाना लेखने पण खास स्थान आप्युं छे; कारण के जैन संघनां आ वे अंगो ज्ञानना क्षेत्रमा घणां दुर्बल रह्यां छे, तेथी आ अंगोमां पण आ दिशामां * कंईक उत्साह वर्धन थाय । एक वातनो गौरवपूर्वक उल्लेख करवो जोईए के समितिए लेखकोने लेखो लखवा माटे दोढथी वे मास जेटली अल्पसमय मर्यादा आपेली; वळी, उपाध्यायजी अंगे ज कंईक लखवा आग्रह सेवेलो ज्यारे वीजी बाजए उपाध्यायजीना जीवन उपर लखवा माटे. आज सधी नहीं जेवी काची सामग्री विद्यमान न हती, म्होटो वर्ग तेमनां जीवन-कवनथी अपरिचित हतो, आ संजोगोमां कार्यसागरमां गळावूड डूबेला विद्वद्वर्ग पासेथी बौद्धिक सामग्री मेळववी, ए केटलुं मुश्केल कार्य छे ते तद्विज्ञोथी अज्ञात नथी। एटले ज समितिए ज्यां मात्र पंदरेक लेखोनी आशा राखेली त्यां धारणाथी द्विगुणाधिक लेखो मेळवी शकी, ते खरेखर, ख्यातनाम पुण्यश्लोक महापुरुषना पुण्यवलने ज आभारी हतुं। सुजसवेलीभास अंगे 3333333333333333333333333333333333333333333933839338883393889393338888888 पू. उपाध्यायजी भगवानना जीवननी ढूंकी नोंध मात्र 'सुजसवेलीभास' नामनी चार ढाळमां विभक्त थएली, ५२ कडीओमां पूर्ण थती एक नानकडी गुजराती पद्यकृति रजू करे छ। (जे काव्यकृति आ ज अंकना २३५मां पृष्ठमां छे) आपणा दुर्भाग्ये आ कृति सिवाय एमना जीवन अंगे, वीजी कोई व्यवस्थित नोधो, विविध घटनाओ, विहारप्रदेशो, शिष्यसंपत्ति अने ग्रन्थनामो वगेरे वावतो. अंगे कोई खास सामग्री मलती नथी। घणी घणी वावतो उपर अंधारपट ज पथराएलो छे; एम छतां * एओश्रीना जीवनचरित प्रसंगमा तमाम ग्रन्थो प्रमाण, भाषा, विषय, रच्यासंवत्, कोना शासनमा लखी, तनी हस्तप्रति क्या है, मुद्रितकृतिना प्रकाशक कोण? वगेरे अनेक हकीकतो साथेनी सुविस्तृत ॐ ग्रन्थयादी आपवामां आवशे. 888888888888888888 [१६६] 888888888888888888
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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