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________________ अनुसार-जयंतीप्रसाद जैन पुत्र रिक्खीलाल जैन सहपऊ मथुरा ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के कारण सन् 1930 में 3 मास और सन् 1932 में 6 मास का कारावास और 50 रुपये जुर्माने की सजा पायी।53 लेखक ने मथुरा जाकर ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम के वयोवृद्ध संचालक श्री केशवदेव जैन से साक्षात्कार किया। उन्होंने पुराने संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि इस आन्दोलन का प्रारम्भ होते ही इस आश्रम के अनेक विद्यार्थियों ने उसमें अपना योगदान दिया। अयोध्याप्रसाद ‘गोयलीय' भी इसी आश्रम के छात्र थे। जिन्होंने केन्द्रीय स्थल दिल्ली में रहकर इन आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी दिखाई। 'अनेकान्त' पत्रिका में गोयलीय ने लिखा है-दिल्ली में 1930 के नमक सत्याग्रह के पहले जत्थे में 5 सत्याग्रहियों में हम दो जैन थे। 70-80 हजार की भीड़, हमें देहली से सत्याग्रह स्थल (सीलमपुर-शाहदरा) की और पहुँचाने चली तो मार्ग में लाल किले के सामने लाल मंदिर आया। प्रत्येक शुभ कार्यों में जैनी मंदिर जाते ही हैं। अतः हम दोनों भी मंदिर को देखते ही भीड़ को रोक कर दर्शनार्थ गये। इस तनिक सी बात से देहली में यह बात फैल गयी कि देहली के दोनों सत्याग्रही जैन हैं। जैनों ने सबसे आगे बढ़कर अपने को भेंट चढ़ाया हैं। हाँ भेंट ही, क्योंकि उस समय किसी को गवर्नमेंट के इरादे का पता नहीं था। उन्होंने लिखा है हमें जब जत्थे में लिया गया. तब कांग्रेस अधिकरियों ने स्पष्ट चेतावनी दे दी थी कि सम्भव है तुम पर घोड़े दौड़ाये जायें, गोलियाँ चलाई जायें, लाठियाँ बरसाई जायें, अंगहीन या अपाहिज बनाये जायें। इस तरह के खतरों को ध्यान में रखकर ही साबुत कदम और पूर्ण अहिंसक बने रहने की हमने एक लाख जन-समूह में प्रतिज्ञा की थीं। गोयलीय जी के इस कदम से जैन समाज में भी राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने की अलख जगी। जैन लोग यह कहते नहीं थकते थे कि मथुरा से 'गोयलीय' ने दिल्ली आकर जैन समाज को आन्दोलन में भाग लेने के लिए जागृत कर दिया। उन्होंने लिखा है कि लोगों को जब मालूम हुआ कि हम दोनों जैन हैं, तो लोग अश-अश करने लगे और जैन तो गले मिल-मिलकर रोने लगे। “भई तुम लोगों ने हमारी पत रख ली।' नमक सत्याग्रह हुआ। पुलिस ने अंडकोष पकड़कर घसीटे नमक का गरम पानी छीना-झपटी में शरीरों पर गिरा. परन्त सदैव इसी 'पत' का ध्यान बना रहा। व्यक्ति तो हमारे जैसे अनगिनत पैदा होंगे, पर 'पत' गई, तो फिर हाथ न आयेगी। इसी भावना ने हमें लहमे भर को विचलित नहीं होने दिया। अयोध्याप्रसाद गोयलीय को दिनांक 30.06.1930 को 2 वर्ष 3 माह कैद की सजा सुनायी गई तथा उन पर 124ए, 143 भारतीय दंड संहिता के तहत कार्यवाही की गयी। उनकी दिल्ली जेल में बंदी संख्या 5342 थी। गोयलीय जी दिल्ली के अलावा अन्य जेलों में भी रहे, उन्होंने लिखा है-दिल्ली सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 91
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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