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________________ इस प्रकार दूसरी बार भी क्रांतिकारियों को सफलता नहीं मिल पायी। अंग्रेजी सरकार की नजर शीघ्र ही अर्जुनलाल सेठी के जैन विद्यालय पर पड़ गयी। सेठी जी सरकार की मंशा भापते ही अपने विद्यालय को जयपुर से इंदौर ले गये। इंदौर के जैन विद्यालय में भी जयपुर की भाँति ही क्रांतिकारी तैयार किये जाते थे। पुलिस ने एक बार इस विद्यालय पर छापा मारा। छापे के दौरान विद्यालय में ठहरे एक पुराने विद्यार्थी शिवनारायण के पास से कुछ गुप्त दस्तावेज पकड़े गये, जिसके आधार पर पुलिस को 'नीमेज' और 'जोधपुर' कांड के बारे में जानकारी मिल गयी। इन दोनों कांडों में शामिल क्रांतिकारियों में से दो क्रांतिकारी मोतीचंद जैन और विष्णुदत्त द्विवेदी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन पर अभियोग चलाया गया। सैशन जज शाहबाद ने 05.10.1914 को मुकदमे का फैसला सुनाते हुए मोतीचंद जैन को मृत्युदण्ड तथा विष्णुदत्त द्विवेदी को 12 वर्ष कैद की सजा सुना दी। मोतीचंद जैन शहीद हो गये। अर्जुनलाल सेठी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, परन्तु उनके विरुद्ध यथेष्ट प्रमाण न मिलने के कारण उन्हें जयपुर की जेल में नजरबंद करके रखा गया। श्री अर्जुनलाल सेठी नजरबंदी से मुक्त होने के बाद पुनः क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने लगे। उनकी गतिविधियों से परेशान होकर 11.03. 1916 को महाराजा जयपुर के आदेश पर श्री सेठी को 5 वर्ष कैद की सजा सुना दी गयी। उन पर आरोप लगाया गया कि वे आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहे हैं। सबसे पहले उन्हें अजमेर जेल भेजा गया, वहाँ से केन्द्रीय सरकार के आदेश पर रेग्यूलेशन 3/1818 में उन्हें शाहीनजरबंद बनाकर मद्रास जेल में रखा गया।" अर्जुनलाल सेठी की गिरफ्तारी के कारण राष्ट्रीय नेताओं को बहुत धक्का लगा। लोकमान्य तिलक, ऐनीबीसेन्ट, महात्मा गाँधी तथा लखनऊ निवासी ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद और अजितप्रसाद जैन एडवोकेट ने उन्हें मुक्त कराने के लिए भरसक प्रयास किये, परन्तु अंग्रेजी सरकार टस से मस न हुई।92 महात्मा गाँधी इस सम्बन्ध में अजितप्रसाद जैन (लखनऊ) से पत्राचार करते रहते थे। एक पत्र में उन्होंने लिखा, 'मैंने अर्जुनलाल सेठी के सम्बन्ध में वर्ष के प्रारम्भ में कार्यवाही की थी, किन्तु जब मुझे मालूम हुआ कि उनके खिलाफ सरकार के पास निश्चित प्रमाण हैं, तब से मेरा उत्साह मंद पड़ गया है। मामले में आगे कदम उठाने के पहले मैं उस पर आपसे बातचीत करना चाहता हूँ। आपका यह तर्क ठीक है कि हम बिना शर्त छोड़ देने की नहीं, बल्कि उचित रूप से मुकदमा चलाने की माँग करते हैं।... मेरा कांग्रेस के अधिवेशन में लखनऊ आने का कार्यक्रम बन रहा है, तब मैं आपसे मिलकर सम्पूर्ण मामले पर बातचीत करूँगा। इस पत्र से स्पष्ट है कि गाँधी जी भी श्री सेठी की रिहाई के सम्बन्ध में चिन्तित रहते थे, परन्तु 66 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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