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________________ गयी। नेमिशरण जैन ने नुक्कड़ सभाओं को सम्बोधित कर जनता में जोश भर दिया और इसी प्रकार टैक्स न देने का आह्वान किया। फलस्वरूप 10 तारीख को ही सुबह 8 बजे श्रोत्रिय जगदीशदत्त व मौ. अब्दुललतीफ ने टैक्स देने से इंकार कर दिया और अपनी गिरफ्तारी दी, उन पर दस-दस रुपये का जुर्माना हुआ। उसके बाद प्रातः 10 बजे नेमिशरण जैन की माता दुर्गादेवी जैन, बहिन प्रकाशवती जैन, धर्मपत्नी श्रीमती शीलवती जैन व भाई ने बिना टैक्स दिये मेले में प्रवेश किया और अपनी गिरफ्तारियाँ दी। इन सभी पर पाँच-पाँच रुपये जुर्माना किया गया। दोपहर 12 बजे तीन स्त्रियाँ व एक पुरुष गिरफ्तार हुए। उसके बाद 1 बजे बाबू रतनलाल जैन ने अपने साथियों सहित मेले में प्रवेश किया और टैक्स देने से साफ इंकार कर दिया, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। बिजनौर निवासियों का निरंतर उत्साह देखकर जिला मजिस्ट्रेट परेशान हो गया, अतः उसने आदेश दिया कि टैक्स न देने वालों को गिरफ्तार न किया जाये। केवल उनके नाम नोट कर लिये जायें। जिला मजिस्ट्रेट ने इस आन्दोलन के सूत्रधार नेमिशरण जैन एवं रतनलाल जैन सहित सात लोगों पर यह कहकर कि इनके ताँगे रुकने से भीड़ हो गई तथा सारा रास्ता रुक गया, पुलिस एक्ट की धारा 32 में मुकदमे चलाये तथा प्रत्येक पर दो सौ रुपये का जर्माना कर दिया। नेमिशरण जैन ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद में सरकार से यह प्रश्न पूछा कि कलक्टर ने मेले में टैक्स किस कानून के अंतर्गत लगाया? उनके इस प्रश्न पर सरकार भी चुप रह गयी। बिजनौर में श्री जैन ने इस आन्दोलन को पूरे जोर के साथ उठाया। 11 नवम्बर, 1924 को श्री पुरुषोत्तमदास टंडन ने बिजनौर कांग्रेस कैम्प कार्यालय में पहुँचकर एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया। श्री टंडन ने जिला प्रशासन द्वारा मेले में 'कर' और 'तहबाजारी' वसूल करने के निर्णय की घोर शब्दों में निन्दा की। उन्होंने कर न देने वाले नागरिकों के प्रयासों की सराहना की। इस घटना से स्पष्ट है कि जैन समाज के नागरिकों ने बिजनौर में सक्रिय होकर कार्य किया। लखनऊ के जैन समाज ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ होने से पूर्व ही देश सेवा का कार्य प्रारम्भ कर दिया था। सन् 1918 में बाबू अजितप्रसाद जैन (एडवोकेट) ने लखनऊ में एक सेवा समिति की नींव डाली। इस समिति का जाल सारे शहर में तेजी से फैल गया। सेवा समिति गुप्त रूप से देश सेवा का कार्य करती थी तथा रात को लखनऊ की सड़कों पर पहरा देती थी। समिति के विषय में स्वतंत्रता सेनानी महात्मा भगवानदीन ने लिखा है- अंग्रेजी सरकार की आँखों में शीघ्र ही यह समिति खटकने लगी, क्योंकि यह समिति धीरे-धीरे पूरे लखनऊ पर कब्जा करती मालूम होती थी और ऐसा साफ दिखाई दे रहा था कि बहुत जल्द वैसी समितियाँ बनारस और इलाहाबाद में खड़ी हो जाएंगी।'86 महात्मा भगवानदीन ने भी 64 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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