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________________ है कि वे लोकमान्य के सदृश देशोन्नति के लिए न्यौछावर होने वाले विद्वान जैन समाज में भी तैयार करें । 2. यह सम्मेलन समिति राष्ट्रीय सभा कांग्रेस के असहयोग सम्बंधी सिद्धान्तों का अनुमोदन करती है तथा जैन समाज का आह्वान करती है कि अगली कार्यवाही के लिए नीचे लिखे कार्य किये जायें। क. जिन लोगों को सरकारी उपाधियाँ प्राप्त हैं, उन्हें वे शीघ्र ही छोड़ देनी चाहिए । ख. जो लोग सरकारी कौंसिलों में मेम्बर हैं, उन्हें कौंसिलों से पृथक् हो जाना चाहिए । ग. वकील और बैरिस्टर आदि को वकालत छोड़कर स्वतंत्र जीवी होना चाहिए । घ. जैनियों को अपने फैसले करने के लिए अदालतों में न जाकर पंचायतों से फैसला करवाना चाहिए । ङ. मुकदमे, फैसले करने के लिए विद्वान लोगों की स्वतंत्र पंचायतें स्थापित करनी चाहिए । च. जैन विद्यार्थियों को सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और कॉलेज छोड़ देना चाहिए । छ. विद्वान वकील आदि व्यक्तियों को देशोपयोगी लौकिक शिक्षा तथा धार्मिक शिक्षा के प्रचारार्थ जातीय शिक्षालय स्थापित करने चाहिए । ज. विलासिता को छोड़कर अपने देश की वस्तुओं को काम में लाना चाहिए तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए । झ. स्वदेशी वस्त्र आदि पदार्थों के निर्माण हेतु व्यापारियों को स्वतंत्र कारखाने खोलने चाहिए। प. सभी जैन भाइयों को सरकारी बैंकों से अपना रुपया निकाल लेना चाहिए और उसे व्यापार में लगाना चाहिए । 3. यह सम्मेलन निम्नलिखित महाशयों को धन्यवाद देती है, जिन्होंने सरकारी उपाधियाँ तथा वकालत छोड़ दी है और उन जैन विद्यार्थियों को भी धन्यवाद देती है, जिन्होंने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और कॉलेजों को छोड़ दिया है। कुछ नाम लिखे जा रहे हैं क. श्रीयुत् प्यारेलाल जैन वकील देहली, उन्होंने अपनी सरकारी उपाधि राय साहबी छोड़ दी है। ख. श्रीयुत् गोकुलचंद जैन वकील दमोह, उन्होंने अपनी राय साहबी तथा क छोड़ दी है। ग. बाबू झुम्मनलाल जैन वकील, सहारनपुर उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी है। असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 45
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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