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________________ बंटायें। जैन धनवानों को उचित है कि कुछ रकम सच्चे परोपकार भाव से शीघ्र ही भेजें। इस फण्ड के मंत्री व खजांची घनश्यामदास बिड़ला नियत हुए हैं। उनका पता-रायल एक्सचेंज पैलेस नं. 9. कलकत्ता है। इसी पते पर रुपया भेजना उचित है। कलकत्ता, बम्बई, देहली आदि के नगरों में जो अग्रवाल जैन हैं, उनका सबसे पहले कर्तव्य है कि वे द्रव्य भेजकर सेवा करें। लाला जी अग्रवाल जैन ही थे। हम अपने जैन छात्रों को कहेंगे कि वे जहाँ भी पढ़ते हों, 1 रुपये प्रति छात्र के हिसाब से धन एकत्र कर शीघ्र ही ऊपर के पते पर भेज दें तथा अपने दान का समाचार 'जैन मित्र' को भेजें, जिससे हमें संतोष हो कि इतने जैनों ने अपना पवित्र कर्तव्य पाला है। जैन मित्र के माध्यम से ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने जैन समुदाय के लोगों से कांग्रेस का सदस्य बनने का आह्वान किया। राष्ट्रीय महासभा के सभासद शीघ्र बनिये शीर्षक से उन्होंने लिखा-बम्बई में तारीख 24-25 मई को जो कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन हुए, उसमें महात्मा गाँधी जी के पेश करने से यह प्रस्ताव पास हुआ है कि शीघ्र ही तारीख 31 अगस्त, 1929 से पहले-पहले कांग्रेस के सभासद, 7 लाख स्त्री-पुरुष हो जाने चाहिए। केवल चार आना वार्षिक देने से हर एक स्त्री पुरुष सभासद हो सकता है। सभासद का यह कर्तव्य है कि वह खादी पहने, मादक वस्तु न लेवे तथा अस्पृश्य जातियों से घृणा न करे। सभासदों की जरूरत इसलिए है कि यदि ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट के अनुसार स्वराज्य की योजना स्वीकार नहीं की, तो 31 दिसम्बर के बाद पूर्ण स्वतंत्रता के लिए घोषणा करनी पड़ेगी। उस समय इन सभासदों का कर्तव्य होगा कि कांग्रेस के प्रस्ताव के अनुसार असहयोग व सत्याग्रह के लिए तैयार हो जायें और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान दें। जैन भाई व बहनों को भी उचित है कि प्रेमपूर्वक देशसेवा के भाव से कांग्रेस के सभासद बनें व परदेशी वस्त्रों का स्वयं त्याग करें व त्याग कराने का उद्यम करें। ___ लाहौर में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास होते ही 'जैन मित्र' ने अपने सम्पादकीय में जैन समाज को आन्दोलन में भाग लेने को प्रेरित किया। उसने लिखा-भारतीय प्रजा के हाथों में अपने ही दिये हुए कर को किस प्रकार खर्च करना है, यह भी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। इसके अलावा अनेकों ऐसे कारण हैं, जिससे भारतीय जनता बहुत दुःखी है। इसलिए राष्ट्रीय महासभा में (लाहौर कांग्रेस में) इस वर्ष यह प्रस्ताव पास किया गया है कि पूर्ण स्वराज्य प्राप्त किया जाये व इसके लिए कौंसिल को छोड़कर बाहर आकर पूरा-पूरा उद्योग किया जाये। मादक वस्तुओं का प्रचार बंद किया जाये, स्वदेशी वस्तुओं का व खासकर स्वदेशी वस्त्रों का व्यवहार भारत व्यापी किया जाये तथा अहिंसक असहयोग व सत्याग्रह के द्वारा पूर्ण स्वराज्य प्राप्त किया जाये। जैनियों को उचित है कि इन कामों में कांग्रेस का हाथ बंटावें। 172 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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