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________________ लिया। उन्हें पास के एक गाँव में एक चौधरी के यहाँ सख्त पहरे के बीच एक दिन रखा गया। 13 अगस्त की शाम को कुछ गवाहों को इकट्ठा करके डी.आई.आर. धारा 35 के अंतर्गत पुलिस ने उन्हें काराग्रह में डाल दिया। श्री जैन 13 अगस्त से 21 नवम्बर 1942 तक जेल में रहे। 21 नवम्बर को 18 बेंतों की सजा देकर उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्होंने रिहा होते ही पुनः आन्दोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। इस बार वे पुलिस के हाथ नहीं आये। 22 नवम्बर 1942 से 22 मार्च 1943 तक उन्होंने भूमिगत रहकर सरकार को परेशान रखा।।। सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने के कारण सहारनपुर निवासी शिखरचंद जैन, प्रकाशचंद जैन, बाबूराम जैन, कैलाशचंद जैन आदि को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उनके विषय में कन्हैयालालमिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है-9 अगस्त 1942 को सब नेता गिरफ्तार हो गये और सहारनपुर में हड़ताल हो गयी। जिले में लायड साहब का तूफानी राज्य और उसमें यह हिम्मत! हड़ताल की प्रेरक शक्तियाँ गिरफ्तार कर कोतवाली में लाई गयी और वहाँ जूतों, लात, घूसों और गालियों से उनका खूब स्वागत हुआ। इन लोगों में से शिखरचंद जैन मुनीम को 6 माह की सख्त सजा, प्रकाशचंद जैन को 3 माह सख्त कैद और 300 रुपये जुर्माना तथा बाबूलाल जैन एवं कैलाशचन्द जैन को छः-छः महीने की सख्त कैद की सजा दी गयी। श्री प्रभाकर ने प्रकाशचंद जैन के विषय में उल्लेख करते हुए लिखा है-पतला-दुबला तरुण प्रकाशचन्द जैन 1942 के झकोरे में कांग्रेस में आया। पहले पहल जेल में ही मैंने उसे देखा। वह बोलता, तो बोलता ही रहता और चुप होकर पेड़ के नीचे जा बैठता, तो वहीं बैठा रहता। उसके इरादे बुलन्द थे। झुम्मनलाल जैन के पुत्र हंसकुमार जैन ने पिछले आन्दोलन की भाँति इस आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया। श्री जैन जनपद सहारनपुर के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जो अपनी पारिवारिक परिस्थितियों का ध्यान न रखते हुए 11.08.1942 को जुलूस का नेतृत्व करते हुए गिरफ्तार हुए। उस समय उनकी कन्या कठिन रोग से पीड़ित थी, जो कुछ दिन पश्चात् ही स्वर्ग सिधार गयी। 20 हंसकुमार जैन ने भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण जेल की यात्रायें की। उन्होंने इस आन्दोलन के दौरान 1942 में दो बार 1-1 वर्ष कड़ी कैद की सजा पायी। हंसकुमार जैन के भाई शिवचन्द्रकुमार जैन भी आन्दोलन में सक्रिय रहे। त्रिलोकचन्द जैन ने अपनी लेखनी के माध्यम से आन्दोलन में सहयोग दिया। उनके विषय में श्री 'प्रभाकर' ने लिखा है-त्रिलोकचन्द जैन ने बी.ए. का सर्टिफिकेट ठुकरा कर बागी होने का सर्टिफिकेट लिया और तब से वे लगातार राष्ट्रीय आन्दोलन में काम कर रहे हैं। इस आन्दोलन में उन्होंने गाँधी जी के प्रति अखण्ड श्रद्धा रखकर कार्य किया। 22 144 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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