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________________ भारत छोड़ो आन्दोलन में जैन समाज का योगदान भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का अन्तिम एवं महत्त्वपूर्ण संग्राम ' अगस्त क्रांति' या भारत छोड़ो आन्दोलन के नाम से जाना जाता है । सितम्बर 1939 में यूरोप पर जर्मनी का आक्रमण प्रारम्भ हो गया, जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया । ब्रिटिश सरकार ने भी युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटिश सरकार की घोषणा के कुछ ही घंटे बाद भारत के वायसराय ने भारतीय नेताओं और विधानसभाओं के जनप्रतिनिधियों से बिना कोई परामर्श लिये, मित्र राष्ट्रों के पक्ष में, भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी । भारतीय नेताओं ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में इस घोषणा का विरोध किया । एक वर्ष तक नेताओं ने विभिन्न प्रयास किये कि सरकार अपनी घोषणा को वापस ले ले, परन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अंततः गाँधी जी ने ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ 17 अक्टूबर, 1940 को 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' का प्रारम्भ कर दिया। इस आन्दोलन में सरकार के उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण के बावजूद यह ध्यान रखा गया कि जन आन्दोलन के कारण युद्ध की तैयारी में भयंकर अव्यवस्था पैदा न हो । सत्याग्रह का वास्तविक उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के इस दावे को गलत साबित करना था कि भारत युद्ध की तैयारी में पूरी तरह मदद दे रहा है। गाँधी जी ने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिये कि वह सत्याग्रह करने से पहले अपने जिले के जिला मजिस्ट्रेट को यह सूचना दे दे कि वह कब, कहाँ और किस रूप में सत्याग्रह करेंगे। महात्मा गाँधी ने सबसे पहला सत्याग्रही विनोबाभावे को चुना । विनोबा जी चार दिन तक युद्ध विरोधी प्रचार करते रहे, पांचवे दिन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करके उन्हें तीन महीने की सजा दी गयी । उनकी गिरफ्तारी के बाद एक-एक करके विभिन्न कांग्रेस कमेटियों, विधानमण्डल के कांग्रेसी सदस्यों तथा अन्य नागरिकों ने सत्याग्रह करना प्रारम्भ कर दिया । नवम्बर 1940 के अंत तक बड़ी संख्या में कार्यकर्ता जेल पहुँच गये। सारे देश में तनातनी का वातावरण 120 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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