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________________ के इन आन्दोलनों का व्यापक प्रभाव पड़ा तथा जैन समाज ने विदेशी वस्त्रों को त्यागकर स्वदेशी वस्त्रों को पहनना प्रारम्भ कर दिया। देश की उन्नति में देशी चीजों को उपयोग करना विदेशी सत्ता को चुनौती देना था । अतः गाँधी जी ने इसी माध्यम भारतीय जनता को मार्गदर्शन दिया। जैन समाज उनके निर्देशों पर खरा उतरा तथा अपने मंदिरों, संस्थानों एवं निजी उपयोग में खादी का ही उपयोग किया। इसके अनेक उदाहरण हमें तत्कालीन समाचार पत्रों तथा अन्य साक्ष्यों से मिलते हैं 1 सहारनपुर जिले के जैन समाज द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया गया । झुम्मनलाल जैन के विषय में कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है कि श्री जैन कभी अपने सिद्धान्तों से नहीं डिगे। 1920 में उन्होंने वकालत को छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश किया और जो कुछ कर सकते थे, वह सब उन्होंने किया । तब से अब तक वे कांग्रेस के साथ हैं । उनमें महत्त्वाकांक्षायें और जोड़-तोड़ की भावना होती, तो हमारे प्रान्त के राजनीति क्षेत्र में आज उनका अपना स्थान होता । 1932 में वे जेल की यात्रा कर आये हैं । झुम्मनलाल जैन के पुत्र हंसकुमार जैन ने 1930 के आन्दोलनों में सक्रिय होकर रुड़की छावनी में सिपाहियों को भड़काने के लिए इश्तहार बाँटे। इससे सम्पूर्ण छावनी में कोहराम मच गया। श्री जैन को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 4 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गई। उनके विषय में 'प्रभाकर' जी लिखते हैं- जब उन्हें 4 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गई, तो जिले भर में सन्नाटा छा गया, पर वे हँसते हुए अपनी बैरक में लौटे और उस रात में इतना बढ़िया नाचे कि कैदी साथियों को आज भी वह याद है । 1932 में जेल का कठोर वातावरण उनकी वंशी की ध्वनि और घुंघरूओं की झंकार से थिरकता रहा । 'अरे भाई रोते हो, तो जेल आते ही क्यों हो?' यह उनकी खास उक्ति थी। 16 सूचना विभाग उ.प्र. द्वारा प्रकाशित 'स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक' में उल्लेख मिलता है कि सन् 1930 में इश्तहार बाँटने पर हंसकुमार जैन को 250 रुपये जुर्माने का आर्थिक दण्ड भी दिया गया। 7 अजितप्रसाद जैन ने इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। सहारनपुर में 18 मार्च, 1930 को उनकी अध्यक्षता में चौक में शानदार जलसा हुआ। इस जलसे में तय किया गया कि 26 अप्रैल को नमक कानून तोड़ने का विधिवत् प्रारम्भ किया जायेगा और उसी अनुरूप आन्दोलन किया गया। अजितप्रसाद जैन ने सम्पूर्ण जिले का नेतृत्व किया। वे लम्बे समय तक जेलों में भी रहे । 'जैन मित्र' के तत्कालीन समाचार के अनुसार-सहारनपुर में अजितप्रसाद जैन (सेक्रेट्री स्थानीय कांग्रेस कमेटी) को दफा 124 के अनुसार 1 वर्ष की तथा झुम्मनलाल जैन को 6 मास की सख्त सजा हुई है। 19 दिसम्बर 1932 में अजितप्रसाद जैन ने दफा 144 तोड़ी। उन्हें 4 माह की सजा सुनाई गयी । वहाँ से छूटने के बाद उन्होंने खुरशैदीलाल के साथ फिर 106 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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