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________________ पुण्य शुभयोग रूप होता है। जयधवल टीका में कहा गया है कि यदि शुभ एवं शुद्ध परिणमों से कर्मों का क्षय न माना जाय तो फिर कर्मों को क्षय हो ही नहीं सकता - 'सुह-सुद्धपरिणामेहिं कम्मक्खयाभावे तक्खयाणुववत्तीदो' (जयधवल पुस्तक, पृष्ठ ५) इसी ग्रन्थ में अनुकम्पा एवं शुद्ध उपयोग को पुण्यासव का एवं अदया और अशुद्ध उपयोग को पापास्रव का कारण कहा है। अनुकम्पा से पुण्यास्रव भी होता है तो कर्मक्षय भी होता है, क्योंकि पुण्यासव विशुद्धिभाव से होता है एवं विशुद्धिभाव कर्मक्षय का भी हेतु है। पुण्य को लेखक ने धर्म के रूप में प्रतिपादित करते हुए कहा है कि विशुद्धिभाव रूप पुण्य अथवा सद् प्रवृत्तिरूप पुण्य धर्म है। सकारात्मक अहिंसा को भी वे धर्म एवं पुण्य के रूप में प्रतिपादित करते हैं। 'क्षयोपशमादि भाव, पुण्य और धर्म' में क्षायोपशमिक, क्षायिक और औपशमिकभाव को मोक्ष का हेतु होने से धर्म एवं पुण्य के रूप में निरूपित किया गया है। पुण्य तत्त्व को आत्म-विकास का और पुण्य कर्म को भौतिक विकास का सूचक बताते हुए लोढा सा० ने प्रतिपादित किया है कि पुण्यतत्त्व का सम्बन्ध आत्म-गुणों के प्रकट होने से है, जो आध्यात्मिक विकास को द्योतित करता है तथा पुण्य कर्म का सम्बन्ध पुण्य तत्त्व के फल रूप में मिलने वाले इन्द्रिय, गति आदि सामग्री एवं सामर्थ्य की उपलब्धि से है जो भौतिक विकास को इंगित करता है। आध्यात्मिक विकास एवं भौतिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है। संसारी अवस्था में प्राणी का जितना आध्यात्मिक विकास होता है उतना ही उसका भौतिक विकास स्वतः होता जाता है। लेखक के अनुसार सद्गुणों का होना ही सम्पन्नता है एवं दुर्गुणों को होना ही विपन्नता है। सद्गुण रूप सम्पन्नता पुण्य का एवं दुर्गुण रूप विपन्नता पाप का फल है। __ कृति के अन्त में पुण्य-पाप विषयक ११८ ज्ञातव्य तथ्य दिए गए हैं जो लेखक के व्यापक अध्ययन एवं मौलिक चिन्तन को प्रस्तुत करने के साथ पाठक को नई दिशा प्रदान करते हैं। पुण्य-पाप तत्त्व का आगम एवं कर्म-सिद्धान्त के आलोक में किया गया प्रतिपादन मौलिक-चिन्तन एवं तार्किक कौशल से परिपूर्ण है। पं० श्री लोढा सा० आगम एवं कर्मसिद्धान्त के विशेषज्ञ होने के साथ प्रखर समीक्षक एवं साधक भी हैं। उन्होंने आत्मिक-विकास क्रम के आधार पर पुण्य तत्त्व एवं पुण्य कर्म दोनों की उपयोगिता सिद्ध की है। [62] जैनतत्त्व सार
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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