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________________ एवं नितनूतन अनन्त सुख के उपभोग की उपलब्धि का तथा वीर्य गुण आत्मसामर्थ्य की प्राप्ति का सूचक है। इन समस्त स्वाभाविक गुणों में बाधा उत्पन्न होना अन्तराय कर्म है। दानादि गुणों में बाधा उत्पन्न होना अन्तराय है, तथा यह बाधा जिस कर्म से उत्पन्न होती है वह अन्तराय कर्म है। अन्तराय कर्म के पाँच भेद हैं- दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय तथा वीर्यान्तराय। स्वार्थपरता से दानान्तराय का, कामना से लाभान्तराय का, ममता से भोगान्तराय का, आसक्ति-अहंभाव से उपभोगान्तराय का और कर्तृत्व भाव से वीर्यान्तराय का आस्रव सर्वबंध होता है। भगवती सूत्र में अन्तराय कर्म के बंध का निरूपण करते हुए कहा है गोयमा! दाणंतराएणं लाभंतराएणं भोगतराएणं उवभोगंतराएणं वीरियंतराएणं अन्तराइयकम्मासरीरप्पयोगनामए कम्मस्स उदएणं अन्तराइयकम्मासरीरप्पओगबंधे। -भगवती सूत्र, शतक 8, उद्देशक सूत्र 111 अर्थात् दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय एवं वीर्यान्तराय से अन्तराय कर्म का उपार्जन होता है। तत्त्वार्थ सूत्र में विघ्न उत्पन्न करने को अन्तराय कर्म का बंध हेतु कहा है विजकरणामन्तरायस्य। -तत्त्वार्थसूत्र, 6.27 इन विघ्नों का उल्लेख ऊपर स्वार्थपरता, कामना, ममता, आसक्ति एवं कर्तृत्वभाव के रूप में किया गया है। यहाँ पर दान, लाभ, भोग, उपभोग एवं वीर्य का सम्यक् स्वरूप समझने से ही ज्ञात हो सकेगा कि ये किस प्रकार केवली की उलब्धियाँ अतः इनके अन्तराय एवं इन उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है विशेष जानकारी के लिए लेखक की पूर्व प्रकाशित पस्तक 'बन्ध तत्त्व' के अन्तराय कर्म अध्याय में निम्नांकित प्रकरण पठनीय है- अन्तराय कर्म के भेद एवं बंध हेतु; दानान्तराय एवं अनन्तदान; लाभान्तराय एवं अनन्तदान (औदार्य); भोगान्तराय एवं अनन्तभोग (सौन्दर्य); उपभोगान्तराय एवं अनन्तभोग (माधुर्य); वीर्यान्तराय एवं अनन्तवीर्य (सामर्थ्य); अन्तराय कर्म : एक समग्र विश्लेषण; मोहनीय कर्म और अन्तराय कर्म में पारस्परिक सम्बन्ध; घाती कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध एवं अन्तराय कर्म; आवरणीय कर्म एवं अन्तराय कर्म में अन्तर। बंध तत्त्व [207]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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