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________________ कायोत्सर्ग ध्यान के प्रभाव से सम्पूर्ण काया में जब चिन्मयता का अनुभव होता है, कहीं पर भी जड़ता का लेशमात्र भी दोष नहीं रहता है, साथ ही सूक्ष्म शरीर एवं कारण (कार्मण) शरीर में भी असंगता हो जाती है, तादात्म्य टूट जाता है तब ध्याता को अपनी काया से स्पष्ट भिन्नता का अनुभव होता है। तब वह इन सब शरीरों (कायों) से प्रभावित नहीं होता है, यही देहातीत अवस्था कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग से सूक्ष्मतम शरीर (कारण या कार्मण शरीर) में स्थित कर्म नीरस, शुष्क हो निर्जीव हो जाते हैं और तब वे जर्जरित हो जाते हैं। जर्जरित होने से झड़ जाते हैं, निर्जरित हो जाते हैं, खिर जाते हैं। आभ्यन्तर तप से कषाय-क्षय तात्पर्य यह है कि आभ्यंतर-तप प्रायश्चित्त से क्रोध कषाय का, विनय-तप से मानव कषाय का, वैयावृत्त्य तप से माया कषाय का और स्वाध्याय, ध्यान एवं व्युत्सर्ग तप से लोभ कषाय का क्षय होता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी एक तप से किसी एक विशेष कषाय का ही क्षय होता है। यह नियम है कि प्रत्येक दोष के साथ अन्य समस्त दोष भी न्यूनाधिक जुड़े रहते हैं। इनमें से उस समय उदयमान क्रियाशील दोष मुख्य होता है और अन्य दोष गौण होते हैं। यही कारण है कि जब किसी भी दोष से, कषाय में कमी होती है तो अन्य दोषों व पाप कर्मों के अपकर्षण होता है और जब किसी दोष में कषाय में वृद्धि होती है तो अन्य दोषों व पाप कर्मों में उत्कर्षण होता है। कर्म बन्ध चार प्रकार का है 1. प्रकृति बन्ध 2. स्थिति बन्ध 3. अनुभाग बन्ध और 4. प्रदेश बन्ध। इनके बन्ध के कारण योग और कषाय हैं, जैसा कि कहा है 'जोगा पयडिपएसं ठिड्अणुभागकसायाउ।' पंचम कर्मग्रन्थ गाथा 16 'जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागं कसायदो कुणई' गोम्मटसार-कर्मकाण्ड गाथा 247, द्रव्य संग्रह 32, धवला पुस्तक 22 पृष्ठ 287 प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध योग से अर्थात् मन, वचन व काया की प्रवृत्ति से होता है और स्थिति बन्ध तथा अनुभाग बन्ध कषाय राग, द्वेष, मोह से होता है। यह नियम है कि प्रवृत्ति के अनुरूप ही प्रकृति (आदत) का निर्माण होता है। जैसे शराब-गुटखा खाने से नशे की आदत पड़ती है और उसमें रस लेने से इसका प्रभाव निर्जरा तत्त्व [119]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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