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________________ १२- जा जा वच्चइ रयणी, न सा पड़िनियत्तइ । अहम्मं कुपमाणस्स, अफला जन्ति राईनो ॥ ( उत्तरा० अ० १४-२४) ____जो रात और दिन, एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नहीं आते, जो मनुष्य अधर्म (पाप) करता है, उसके वे रात-दिन बिल्कुल निष्फल जाते हैं । १३- जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । धम्मं च कुणमास्स, सफला जन्ति राईअो । (उत्तरा० अ० १४-२५) जो रात-दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते, हैं वे फिर कभी वापस नहीं आते, जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वे रात दिन सफल हो जाते हैं । १४- तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं । अहिंसा निउणा दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो ॥ ( दश० अ० ६-६) भगवान् महावीर ने अठारह धर्म-स्थानों में सबसे पहला स्थान अहिंसा का बतलाया है । १५- सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविडं न मरिज्जिउं । तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयन्ति णं ॥ (दश० अ०६-११) सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई भी नहीं चाहता। इसीलिये निम्रन्थ (जैन मुनि) घोर प्राणि-वध का सर्वथा परित्याग करते हैं।
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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