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________________ ५० बहुमूल्य है । उन्होंने तत्कालीन तापसों को तपस्या के बाह्य रूप के बदले बाह्याभ्यन्तर रूप प्रदान किया । तप के स्वरूप को व्यापकता प्रदान की । पारस्परिक खण्डन - मण्डन में निरत दार्शनिकों को अनेकान्तवाद का महामन्त्र दिया । सद्गुणों की अवगणना करने वाले जन्मगत जातिवाद पर कठोर प्रहार कर गुण-कर्म के आधार पर जाति व्यवस्था का प्रतिपादन किया । नारियों की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखा और भूले हुए भारत को साध्वी संघ की अनमोल निधि देकर नारी जगत की प्रतिष्ठा का पूर्णतया संरक्षण किया। यज्ञ के नाम पर पशुओं के प्राणों से खिलवाड़ करने वाले स्वर्गकामियों को स्वर्ग का सच्चा मार्ग बतलाया | नदी - समुद्रों में स्नान करने से या पाषाणों की राशि इकट्ठी करने से धर्म समझने की लोकमूढ़ता का निरास किया । लोक भाषा को अपने उपदेश का माध्यम बना कर पण्डितों के भाषाभिमान को समाप्त किया । संक्षेप में यह कि भगवान महावीर स्वामी ने समाज के समग्र मापदण्ड बदल दिये और सम्पूर्ण जीवनदृष्टि में एक भव्य और दिव्य नूतनता उत्पन्न कर दी । * भगवान् महावीर का उपदेशामृत ऊपर की पंक्तियों में भगवान् के जीवन का बाह्य पहलू बतलाया जा चुका है । दूसरे आन्तरिक पहलू को समझने के लिए भगवान् की कल्याणी वाणी को और उनके सिद्धान्तों को समझना आवश्यक है । इसीलिए सर्वप्रथम भगवान की वाणी के कुछ अंश इस प्रकरण में दिये जा रहे हैं । * पण्डित श्री शोभा चन्द्र जी भारिल्ल द्वारा सम्पादित " जैन धर्म " नामक पुस्तक से कुछ परिवर्तन के साथ साभार उद्घृत ।
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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