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________________ २० से परिचित है । धर्मराज युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी, वीर अर्जुन जैसे धनुर्धारी और भीम जैसे गदाधारी बली योद्धाओं को वन-वन की धूलि चटाने वाला कौन था ? यही नीच जूआ था। इसी जूए ने पातिव्रत्य धर्म की सजीव प्रतिमा भगवती द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित एवं तिरस्कृत करवाया था । नए की दुष्टता का कहां तक वर्णन करता चला जाऊं ? नल जैसे समृद्धिशाली भूपति की दुर्दशा करवाने वाला भी यही जुआ था। इसी जूए ने सतीधुरीणा दमयन्ती को आपदाओं की चक्की में पिसवाया था। जूश्रा जीवन का सर्वतोमुखी विनाश करता है, यह दुगुणों का स्रोत है, दुःखों और संकटों का जन्मदाता है, अतः सुखाभिलाषी सहृदय मानव को आपातरमणीय इस जुए से सदा दूर रहने का यत्न करना चाहिये। सात कुव्यसनों में एक जुआ मानव जीवन का एक महान दोष है । जैन शास्त्र इसे कुव्यसन के नाम से पुकारते हैं। जैनशास्त्रों में सात कुव्यसनों का वर्णन पाया जाता है । उन सात कुव्यसनों के नाम निम्नोक्त हैं :द्य तं च मांसं मदिरा च वेश्या, हिंसा च चौयं परदार-सेवा । एतानि सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयन्ति ॥ . अर्थात् -१-चूत-शर्त लगाकर ताश आदि खेल ना, २-मांसाहार करना, ३-मदिरापान करना, ४–वेश्यागमन करना, ५-हिंसा-शिकार खेल्ना, ६-चोरी करना, ७-पर
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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