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________________ दीपमाला की रात्रि को दो महान् मांगलिक कार्य सम्पन्न हुए थे । एक भगवान महावीर का निर्वाण और दूसरे भगवान गौतम को केवल ज्ञान की प्राप्ति । यही कारण है कि दीपमाला की रात्रि जैनों की परम आराध्य तथा परम उपास्य रात्रि बन गई है । जैन लोग इस रात्रि को सबसे महत्त्वपूर्ण तथा आत्मशुद्धि की सर्वोत्तम सन्देशवाहिका रात्रि समझते हैं। शास्त्र कहता है कि इस रात्रि को आकाश के निवासी देव देवियों ने भी वीरानर्वाण और श्री गौतम स्वामी के केवल ज्ञान का महोत्सव मना कर प्रभु वीर तथा श्री गौतम जी महाराज के चरणों में अपनीअपनी श्रद्धांजलियाँ अर्पित की थीं । वृद्ध परम्परा का विश्वास है कि अतीत की भांति आज भी देव देवियां महावीर - निर्वाण तथा गौतमीय केवल -- ज्ञान के उपलक्ष्य में आमोद-प्रमोद करते हैं और उत्सव मनाते हैं । भगवान राम और दीपमाला जैनेतर लोगों में विश्वास पाया जाता है कि दीपमाला बोध को आच्छादित करने वाला), मोहनीय ( जिससे मा मोह को प्राप्त हो) और अन्तराय ( पदार्थों के देने, लेने आदि में विघ्न उपस्थित करने वाला) इन चार कर्मों के क्षय के अनन्वर ही केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है । केवल ज्ञान की प्राप्ति के लिए इन चार कर्मों में भी सर्वप्रथम मोह को क्षय करना पड़ता है । श्री गौतम स्वामी जी महाराज का जब मोह कर्म क्षय हो गया और उसके क्षय होते ही जब अन्य तीन ज्ञानावरणीय आदि घातिक कर्म क्षीण हो गए तो उन्हें एकदम केवल ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) की प्राप्ति हो गई ।
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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