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________________ लोगों ने द्रव्य-उद्योत किया अर्थात् रत्नों का प्रकाश किया । भावउद्योत की पुण्य स्मृति में द्रव्य-उद्योत की प्रतिष्ठा कर दी गई । फिर क्या था ? चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश जगमगा उठा । इस तरह पौषधशाला के अन्धकार को दूर कर दिया गया । भगवान महावीर के भाव--उद्योत की पुण्य स्मृति में किया गया द्रव्य-उद्योत (रत्नों का प्रकाश) पावापुरी की पौषधशाला तक ही सीमित नहीं रहा, कालान्तर में वह पावापुरी से बाहर सभी प्रदेशों में चालू हो गया । सभी स्थानों में कार्तिकी अमावस्या की रात्रि को रत्नों तथा दीपकों का प्रकाश करके भगवान महावीर के निर्धाण-दिवस की पुण्य स्मृति को ताज़ा किया जाने लगा। इस द्रव्य-उद्योत के माध्यम से भाव-उद्योत (ज्ञानालोक) को सम्प्राप्त करने की प्रेरणा भी प्राप्त की जाने लगी। आगे चलकर यही पुण्य स्मृति एक पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई। जैन नरेशों के प्रभावाधिक्य से तथा भगवान महावीर के अपने महान् आध्यात्मिक व्यक्तित्व के कारन धीरे-धीरे यह पर्व सारे भारत वर्ष में मनाया जाने लगा, कार्निक की अमावस्या को सर्वत्र दीपमाला प्रचलित हो गई । दीपमाला करके भगवान महावीर के लोकोपकारों को दोहराना प्रारंभ कर दिया तथा सत्य-अहिसा के अनुपम सिद्धांतों से भाव-उद्योत प्राप्त करने का तथ्य भी लोगों को समझाया जाने लगा* । २४०० वर्षों के पहले की दीपमाला ___ *कुछ विद्वानों का ऐसा कहना है कि कल्पसूत्र में "दव्वुज्जो करिस्सामो” ऐसा पाठ मिलता है । इस का अर्थ है-द्रव्यउद्योत करेंगे। यहां भविष्यत् कालीन क्रिया के प्रयोग से यह स्पष्ट प्रकट हो रहा है कि प्रभु वीर की निर्वाण-रात्रि को राजा लोगों ने रत्नों या दीपकों का प्रकाश नहीं किया प्रत्युत उन्होंने उस
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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