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________________ (ख) बारह वर्ष पंच माह दिन पन्द्रह रहे प्रभु छद्मस्थ पने, लाखों कष्ट हजारों श्राफत सहे आपने रात दिने । देश-देश में विचर-विचर कर तार दिए नर-नार घने, सत्य-उपदेश प्रभु का सुन कर तर गए लाखों अने गिने । कष्ट पे कष्ट सहे सिर ऊपर जिक्र नहीं है करने का, किसी ने ठोके कान में कीले, किसी ने पत्थर बरसाया । किसी ने खीर धरी पांव पर, किसी ने कपटी बतलाया, शान्तमयी प्रभु ऐसे देखे घबराए नहीं आप ज़रा । चण्ड-कोशिया नाग ने जिसदम डंग चलाया था मा कर, मस्त रहे प्रभु ध्यान में अपने क्रोध किया नहीं रत्ती भर । शरणा दे नवकार मन्त्र का तार दिया उस को माखिर, ऐसे ज्ञानी महापुरुष की महिमा गाते हैं घर-घर । उमर ४२ साल आपने रूहानी पद पाया है , केवल ज्ञान और केवल दर्शन पाकर कर्म खपाया है। ११ गणधर शिष्य आप के इन्हें भी पार लगाया है, गौतम और सुधर्मा आदिक सब को मोक्ष पहुँचाया है। उमर हुई जब साल बहत्तर, आया था तब अन्त समे, कातक अमावस पावापुरी में खुशी-खुशी निर्वाण हुए । रत्नों की वर्षा तब होई जगमग-जगमग करने लगे, शाद उसी दिन से दीवाली भारत वाले करने लगे । --X--
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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