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________________ मगध-वैशाली युद्ध का कारण जैन एवं बौद्ध धर्म का अन्तःसंघर्ष हरीगोपाल श्रीवास्तव जैन एवं बौद्ध धर्मों के वाङ्मय के कतिपय पृष्ठ इस आशय के साक्ष्य हैं कि जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी एवं बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध समकालीन राजवंशों पर अपने व्यक्तित्व की छाप एवं अपने धर्म का प्रभाव स्थापित करने के लिए तत्पर एवं प्रयत्नशील रहे। तदनन्तर उनके शिष्यों ने इसी नीति का अनुसरण किया। अपने-अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की चेष्टा एवं सक्रियता ने दोनों को एक दूसरे का प्रतिद्वन्द्वी बना दिया। यह विचित्र तथ्य है कि मगध नरेश अजातशत्रु को जैन लेखक जैन मतावलंबी एवं बौद्ध लेखक बौद्ध मतावलम्बी बताते हैं। उल्लेखनीय है कि अजातशत्रु महावीर स्वामी एवं गौतम बुद्ध का समकालीन था। बौद्ध ग्रन्थों में यह भी लिखा है कि वृद्धावस्था में अजातशत्रु के पिता मगध नरेश बिम्बिसार ने अजातशत्रु को राज्य का शासन-भार सौंप दिया था परन्तु अजातशत्रु सिंहासन पर बैठने को उतावला था और उसने बुद्ध के विद्रोही चचेरे भाई देवदत्त के कहने से बूढ़े पिता को कारागार में बन्द करके भूखा मार डाला। सामञ्जकलसुत्त में यह भी लिखा है कि इस पाप के लिए पीछे उसे बड़ा पश्चाताप हुआ और वह बौद्ध होकर गौतम बुद्ध के पास क्षमा मांगने गया। डॉ० स्मिथ का कहना है कि उक्त हत्या युवराज की धार्मिक चर्चाओं से घृणा की प्रवृत्ति का परिणाम है। प्रतीत होता है कि तत्कालीन जैन एवं बौद्ध समर्थकों की अपने-अपने धर्म
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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